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________________ प्रकीर्णक 9. दंडुक्कले, २. रज्जुक्कले, ३. तेणुकले, ४. देसुक्कले, ५. सवुक्कले । ३२. छेयणस्स पंच पगारापंचविहे छेयणे पण्णत्ते, तं जहा १. उप्पाछेयणे, २. वियच्छेयणे, ३. बंधचडेपणे ४. पएसच्छेयणे, ५. दोधारच्छेयणे। - ठाणं. अ. ५, उ. ३, सु. ४५६ - ठाणं. अ. ५, उ. ३, सु. ४६२ (१) ३३. आनंतरियल्स पंच पगारापंचविहे आणंतरिए पण्णत्ते, तं जहा १. उपायणंतरिए २. विचाणंतरिए ३. पएसाणंतरिए, ४. समयाणंतरिए. ५. सामण्णाणंतरिए । -ठाणं. अ. ५, उ. ३, सु. ४६२ (२) ३४. तुल्लरस छ भेया तेसां सरू परूवणंप. कइविहे णं भंते! तुल्लए पन्नत्ते ? उ. गोयमा ! छव्विहे तुल्लए पन्नत्ते, तं जहा १. दव्वतुल्लए, ३. कालतुल्लए, ५. भावतुल्लए, प. १. से केणट्ठेन भन्ते ! एवं युच्चइ २. खेत्ततुल्लए, ४. भवतुल्लए। ६. संठाणतुल्लए । 'दव्वतुल्लए, दव्वतुल्लए ?' उ. गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वओ तुल्ले, परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलवइरित्तस्स दव्वओ णो तुल्ले । दुपएसिए खंधे दुपएसियस्स खंधस्स दव्वओ तुल्ले, दुपएसिए खंधे दुपएसियवइरित्तस्स खंधस्स दव्वओ णो तुल्ले । एवं जाव दसपएसिए। तुल्लसंखेज्जपएसिए खंधे तुल्लसंखेज्जपएसियस्स संघरस दव्यओ तुल्ले, तुल्लसंखेज्जपएसिए बंधेतुल्लसंखेज्जपएसियवइरित्तस्स संधस्स दव्खओ णो तुल्ले । एवं तुल्ल असंखेज्जपएसिए वि । १९०३ १. दण्डोत्कल - जिसके पास प्रबल दण्ड शक्ति हो, २. राज्योत्कल - जिसके पास प्रबल राज्य शक्ति हो, ३. स्तेनोत्कल - जिसके पास चोरों का प्रबल संग्रह हो, ४. देशोत्कल - जिसके पास प्रबल जनमत हो, ५. सर्वोत्कल - जिसके पास पूर्वोक्त सभी दण्ड प्रबलतम हो । ३२. छेदन के पाँच प्रकार छेदन (विभाग) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. उत्पादछेदन - उत्पाद की अपेक्षा से विभाग करना, २. व्ययछेदन - विनाश की अपेक्षा से विभाग करना, ३. बंधछेदन - सम्बन्ध विच्छेद होना, ४. प्रदेशछेदन- बुद्धि की कल्पना से स्कन्धों का छेदन करना, ५. द्विधारछेदन - अखण्ड वस्तु के दो टुकड़े करना। ३३. आनन्तर्य के पाँच प्रकार आनन्तर्य (निरन्तरता) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. उत्पाद - आनन्तर्य-उत्पाद का अविरह, २. व्यय - आनन्तर्य - विनाश का अविरह, ३. प्रदेश आनन्तर्य प्रदेशों की संलग्नता, ४. समय- आनन्तर्य - समय की संलग्नता, ५. सामान्य- आनन्तर्य - जिसमें विशेष की विवक्षा न हो। ३४. तुल्य के छः भेद और उनके स्वरूप का प्ररूपण प. भन्ते ! तुल्य कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! तुल्य छह प्रकार का कहा गया है, यथा२. क्षेत्रतुल्य, १. द्रव्यतुल्य, ३. कालतुल्य, ४. भवतुल्य ५. भावतुल्य, ६. संस्थानतुल्य । प्र. १ भन्ते ! किस कारण से 'द्रव्यतुल्य- द्रव्यतुल्य' कहा जाता है ? उ. गौतम ! एक परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल से द्रव्यतः तुल्य है किन्तु परमाणु पुद्गल से व्यतिरिक्त (भिन्न) दूसरे पदार्थों के साथ द्रव्य से तुल्य नहीं है। एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध दूसरे द्विप्रदेशिक स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, किन्तु द्विप्रादेशिक स्कन्ध से व्यतिरिक्त दूसरे स्कन्ध के साथ द्विप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्य से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार दशप्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त कहना चाहिए। एक तुल्य संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध दूसरे तुल्य संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध के साथ द्रव्य से तुल्य है, किन्तु तुल्य संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध से व्यतिरिक्त दूसरे स्कन्ध के साथ वह द्रव्य से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार तुल्यअसंख्यात प्रदेशिक स्कन्ध के विषय में भी कहना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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