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________________ १८८८ द्रव्यानुयोग-(३) प. णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधतरं णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! अणाईयस्स अप्पज्जवसियस्स नस्थि अंतरं, अणाईयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। एवं जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगबंधंतरं। प्र. ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर प्रयोग बन्ध का अन्तर काल कितने काल का होता है? उ. गौतम ! अनादि-अपर्यवसित का अन्तर नहीं है, अनादि-सपर्यवसित का भी अन्तर नहीं है। इसी प्रकार अन्तराय कर्म पर्यन्त कार्मणशरीर प्रयोगबन्ध के अन्तर के लिए समझना चाहिए। प्र. भन्ते ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर के इन देशबन्धक और अबन्धक जीवों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. ज्ञानावरणीय कर्म के अबन्धक सबसे अल्प हैं। प. एएसि णं भंते ! जीवाणं नाणावरणिज्जस्स देसबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स अबंधगा, २. देसबंधगा अणंतगुणा, एवं आउयवज्जंजाव अंतराइयस्स। २. (उनसे) देशबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार आयुष्य को छोड़कर अन्तराय-कार्मणशरीर प्रयोगबन्ध पर्यन्त के देशबन्धक और अबन्धकों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! आयुष्यकामणशरीर के देशबन्धक और अबन्धक जीवों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. आयुष्यकर्म के देशबन्धक जीव सबसे अल्प हैं, २. (उनसे) अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। प. एएसि णं भंते ! जीवाणं आउय कम्मस्स देसबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देसबंधगा, २. अबंधगा संखेज्जगुणा। -विया.स.८, उ.९,सु. ९७-११९ १२६. पंच सरीराणं परोप्पर बंधगाबंधगस्स परूवणं प. जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरस्स सव्वबंधे से णं भंते ! वेउव्वियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए? उ. गोयमा ! नो बंधए, अबंधए। प. जस्सणं भंते ! ओरालिय सरीरस्स सव्वबंधे से णं भंते ! आहारगसरीरस्स किं बंधए, अबंधए? उ. गोयमा ! नो बंधए,अबंधए। प. जस्स णं भंते ! ओरालिय सरीरस्स सव्वबंधे से णं भंते! तेयासरीरस्स किं बंधए, अबंधए? उ. गोयमा ! बंधए, नो अबंधए। प. जइ णं भंते ! तेयासरीरस्स बंधए किं देसबंधए, सव्वबंधए? उ. गोयमा ! देसबंधए, नो सव्वबंधए। प. जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरस्स सव्वबंधे से णं भंते ! कम्मासरीरस्स किं बंधए, अबंधए? उ. गोयमा !जहेव तेयगस्स जाव देसबंधए, नो सव्वबंधए। १२६. पाँच शरीरों के परस्पर बन्धक अबन्धक का प्ररूपण प्र. भन्ते ! जिस जीव के औदारिक शरीर का सर्वबन्ध है तो भन्ते ! क्या वह वैक्रिय शरीर का बन्धक है या अबन्धक है ? उ. गौतम ! वह बन्धक नहीं है, अबन्धक है। प्र. भन्ते ! जिस जीव के औदारिक का सर्वबन्ध है तो भन्ते ! क्या वह आहारकशरीर का बन्धक है या अबन्धक है? उ. गौतम ! वह बन्धक नहीं है, अबन्धक है। प्र. भन्ते ! जिस जीव के औदारिक शरीर का सर्वबन्ध है तो भन्ते ! क्या वह तैजस्शरीर का बन्धक है या अबन्धक है? उ. गौतम ! वह बन्धक है, अबन्धक नहीं है। प्र. यदि वह तैजस्शरीर का बन्धक है तो भन्ते ! क्या वह देशबन्धक है या सर्वबन्धक है? उ. गौतम ! वह देशबन्धक है, सर्वबन्धक नहीं है। प्र. भन्ते ! जिस जीव के औदारिक शरीर का सर्वबन्ध है तो भन्ते ! क्या वह कार्मणशरीर का बन्धक है या अबन्धक है? उ. गौतम ! जैसे तैजस्शरीर के विषय में कहा है, वैसे ही यहाँ भी देशबन्धक है, सर्वबन्धक नहीं है पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! जिस जीव के औदारिक शरीर का देश बन्ध है तो भन्ते ! क्या वह वैक्रिय शरीर का बन्धक है या अबन्धक है? उ. गौतम ! वह बन्धक नहीं है, अबन्धक है। जिस प्रकार सर्वबन्ध के विषय में कथन किया उसी प्रकार देशबन्ध के विषय में भी कार्मणशरीर पर्यन्त कहना चाहिए। प. जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! वेउव्वियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए? उ. गोयमा ! नो बंधए, अबंधए। एवं जहेव सव्वबंधेणं भणियं तहेव देसबंधेण वि भाणियव्वं जाव कम्मगस्स।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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