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________________ पुद्गल अध्ययन प. ६. सुभनामकम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! कायउज्जुययाए, भावुज्जुययाए, भासुज्जुययाए, अविसंवादणजोगेणं सुभनामकम्मासरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं सुभनाम कम्मासरीरप्पयोगबंधे। प. असुभनामकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! कायअणुज्जुययाए, भावअणुज्जुययाए, भासअणुज्जुययाए, विसंवायणाजोगेणं असुभनामकम्मासरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं असुभनाम कम्मासरीरप्पयोग बंधे। प. ७. उच्चागोयकम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! जातिअमदेणं, कुलअमदेणं, बलअमदेणं, रूवअमदेणं, तवअमदेणं, सुयअमदेणं, लाभअमदेणं, इस्सरियअमदेणं, उच्चागोयकम्मासरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं उच्चागोयकम्मासरीरप्पयोगबंधे। प. नीयागोयकम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते !कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! जातिमदेणं, कुलमदेणं, बलमदेणं, रूवमदेणं, तवमदेणं, सुयमदेणं, लाभमदेणं, इस्सरियमदेणं, नीयागोय- कम्मासरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं नीयागोयकम्मासरीरप्पयोगबंधे। । १८८७ ] प्र. ६. भन्ते ! शुभनाम-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! काया की ऋजुता (सरलता) से, भावों की ऋजुता से, भाषा की ऋजुता से तथा अविसंवादनयोग से एवं शुभनाम-कार्मणशरीर-प्रयोग नामकर्म के उदय से शुभनाम-कार्मण शरीर-प्रयोग बन्ध होता है। प्र. भन्ते ! अशुभनाम-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! काया की वक्रता से, भावों की वक्रता से, भाषा की वक्रता से तथा विसंवादन-योग से एवं अशुभनामकार्मणशरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से अशुभनाम कार्मण-शरीर-प्रयोगबन्ध होता है। प्र. ७. भन्ते ! उच्चगोत्र-कार्मण शरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! जातिमद न करने से, कुलमद न करने से, बलमद न करने से, रूपमद न करने से,तपोमद न करने से, श्रुतमद न करने से, लाभमद न करने से और ऐश्वर्यमद न करने से तथा उच्चगोत्र-कार्मण-शरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से उच्चगोत्रकार्मणशरीर प्रयोगबन्ध होता है। प्र. भन्ते ! नीचगोत्र-कार्मण-शरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम !जाति मद करने से, कुलमद करने से, बलमद करने से, रूपमद करने से, तपोमद करने से, श्रुतमद करने से, लाभमद करने से और ऐश्वर्यमद करने से तथा नीचगोत्र कार्मण-शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से नीचगोत्र कार्मणशरीर प्रयोग बन्ध होता है। प. ८. भन्ते ! अन्तराय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! दानान्तराय से, लाभान्तराय से, भोगान्तराय से, __ उपभोगान्तराय से और वीर्यान्तराय से तथा अन्तराय कार्मणशरीर-प्रयोगनामकर्म के उदय से अन्तराय कार्मणशरीर प्रयोगबन्ध होता है। प्र. भन्ते ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है? उ. गौतम ! वह देशबन्ध है, सर्वबन्ध नहीं है। इसी प्रकार अन्तराय कर्म पर्यन्त कार्मणशरीर प्रयोगबन्ध जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध काल से कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. अनादि-सपर्यवसित, २. अनादि-अपर्यवसित, इसी प्रकार अन्तराय कर्म पर्यन्त के कार्मण शरीर प्रयोग बन्ध के स्थिति काल को जानना चाहिए। प. ८. अंतराइयकम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! दाणंतराएणं, लाभंतराएणं, भोगंतराएणं, उवभोगंतराएणं, वीरियंतराएणं, अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगबंधे। प. णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे,सव्वबंधे? उ. गोयमा ! देसबंधे, णो सव्वबंधे। एवं जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगबंधे। प. णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. अणाईए सपज्जवसिए, २. अणाईए अपज्जवसिए, एवं जहा अंतराइयकम्मस्स।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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