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________________ ( १८८४ उ. गोयमा ! देसबंधे वि, सव्वबंधे वि। प. आहारगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! सव्वबंधे एक्कं समय, देसबंधे जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. आहारगसरीरप्पयोगबंधंतरंणं भंते ! कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं, अणंताओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, अवड्ढपोग्गलपरियट देसूणं। एवं देसबंधंतरं पि। प. एएसिणं भंते ! जीवाणं आहारगसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबंधगा, २. देसबंधगा संखेज्जगुणा, ३. अबंधगा अणंतगुणा। -विया. स.८, उ.९,सु.८३-८९ १२४. तेयासरीरप्पयोगबंधस्स वित्थरओ परूवणं प. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! वह देशबन्ध भी होता है, सर्वबन्ध भी होता है। प्र. भन्ते ! आहारकशरीर-प्रयोगबन्ध काल कितने काल तक होता है? उ. गौतम ! आहारकशरीरप्रयोगबन्ध का सर्वबन्ध एक समय तक होता है, देशबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक होता है। प्र. भन्ते ! आहारक-शरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर काल कितने काल का होता है? उ. गौतम ! इसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल, काल से अनन्त-उत्सर्पिणीअवसर्पिणीकाल होता है, क्षेत्र से अनन्तलोक, देशोन (कुछ कम) अपार्ध पुद्गलपरावर्तन प्रमाण है। इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! आहारकशरीर के इन देशबन्धक, सर्वबन्धक और अबन्धक जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प आहारकशरीर के सर्वबन्धक जीव हैं, २. (उनसे) देश-बन्धक संख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. एगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे जाव ५. पंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे। प. एगिदियतेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. पुढविक्काइय-एगिदिय तेयासरीरप्पयोगबंधे जाव ५. वणफइकाइय-एगिंदिय तेयासरीरप्पयोगबंधे। एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा ओगाहणसंठाणे जाव-पज्जतसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय कप्पाईयवेमाणिय देव-पंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्त-सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय कप्पाईय वेमाणियदेव पंचिंदिय तेयासरीरप्पयोग बंधेय।। १२४. तैजस शरीरप्रयोग बन्ध का विस्तार से प्ररूपण प्र. भन्ते ! तैजसूशरीर-प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. एकेन्द्रिय-तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध यावत् ५. पंचेन्द्रिय-तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध। प्र. भन्ते ! एकेन्द्रिय-तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय तैजस् शरीर प्रयोगबन्ध यावत्५. वनस्पतिक-एकेन्द्रिय तैजस् शरीरप्रयोग बन्ध। इस प्रकार इसी अभिलाप द्वारा जैसे-(प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें) अवगाहना संस्थानपद में भेद कहे हैं वैसे ही यहाँ भी पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय--तैजस्शरीर प्रयोगबन्ध और अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीतवैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! तैजसूशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्व्यता यावत् आयुष्य के निमित्त से तथा तैजस्शरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध होता है। प. तेयगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए जाव आउयं वा पडुच्च तेयासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं तेयासरीरप्पयोगबंधे।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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