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________________ ( १८७४ - १८७४ उ. समुच्चयबंधे, जं णं अगड़-तडाग-नदी-दह- वावी पुक्खरणी-दीहियाणं-गुंजालियाणं सराणं सरपंतियाणं सरसरपंतियाणं बिलपंतियाणं देवकुल-सभा-पवाथूभ-खाइयाणं फरिहाणं पागारट्टालग-चरियदार-गोपुर-तोरणाणं पासाय-घर-सरण-लेण-आवणाणं सिंघाडग-तिय चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहमादीणं छुहा-चिखल्ल-सिलेससमुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ, से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं, से तं समुच्चयबंधे। प. से किं तं साहणणाबंधे? उ. साहणणा बंधे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. देससाहणणाबंधे य, २. सव्वसाहणणाबंधेय।। प. से किं तं देससाहणणाबंधे? उ. देससाहणणाबंधे,जणं सगड़-रह-जाण-जुग-गिल्लिथिल्लि-सीय-संदमाणिया-लोही-लोहकडाह-कडच्छुअआसण-सयण-खंभ-भंड-मत्त-उवगरणमाईणं देससाहणणा-बंधे समुप्पज्जइ, द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! कुआ, तालाब, नदी, द्रह, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सरोवर, सरोवरों की पंक्ति, बड़े सरोवरों की पंक्ति, बिलों, बिलों की पंक्ति, देवकुल (मन्दिर) सभा, प्रपा (प्याऊ), स्तूप, खाई, परिखा, प्राकार (कोटा), अट्टालक (बुर्ज), चरिका (गढ़ और नगर के मध्य का मार्ग), द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद (महल), घर, शरणस्थान, लयन (गृहविशेष) आपण (दुकान), शृंगाटक (सिंघाड़े के आकार का मार्ग) त्रिक (तिराहा) चतुष्क (चौराहा) चौक, चतुर्मुख मार्ग और राजमार्ग आदि को चूना, मिट्टी, कीचड़ एवं श्लेष (लेप) आदि के द्वारा चिपकाने को समुच्चयबन्ध कहते हैं। यह बन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल रहता है। यह समुच्चय बन्ध का स्वरूप है। प्र. ४. भंते ! संहननबन्ध किसे कहते हैं? उ. गौतम ! संहननबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. देशसंहननबन्ध, २. सर्वसंहननबन्ध। प्र. १. भंते ! देशसंहननबन्ध किसे कहते हैं ? उ. गौतम ! शकट (गाड़ी), रथ, यान, युग्य, गिल्लि, (अम्बाड़ी) थिल्लि (पलाण), शिविका (पालखी), स्यन्दमानिका (पुरुष प्रमाण वाहनविशेष), लोढ़ी, लोहे की कड़ाही, कुड़छी, आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड (मिट्टी के बर्तन),पात्र, नाना उपकरण आदि पदार्थों के साथ जो सम्बन्ध होता है, वह देशसंहननबन्ध है। यह बंध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है। यह देशसंहननबन्ध का स्वरूप है। १. २. सर्वसंहननबन्ध किसे कहते हैं ? . गौतम ! दूध और पानी आदि की तरह एकमेक हो जाना सर्वसंहननबन्ध कहलाता है। यह सर्वसंहननबन्ध का स्वरूप है। यह संहनन का स्वरूप है। यह अल्लिकापन बंध का कथन हुआ। प. भंते ! शरीरबन्ध किसे कहते हैं ? र गौतम ! शरीरबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. पूर्वप्रयोग-प्रत्ययिक, २. प्रत्युत्पन्न प्रयोग-प्रत्ययिक। प्र. भंते ! पूर्वप्रयोग-प्रत्ययिक (शरीरबन्ध) किसे कहते हैं ? उ. गौतम ! जहाँ-जहाँ जिन-जिन कारणों से समुद्घात करते हुए नैरयिक आदि सभी संसारी जीवों के जीवप्रदेशों का जो बन्ध होता है, वह पूर्वप्रयोग प्रत्ययिकबन्ध कहलाता है। यह पूर्वप्रयोग-प्रत्ययिक बन्ध का स्वरूप है। प्र. भंते ! प्रत्युत्पन्न प्रयोग-प्रत्ययिक बंध किसे कहते हैं ? उ. गौतम ! केवलीसमुद्घात करते हुए और उस समुद्घात से प्रतिनिवृत्त होते (वापस लौटते) हुए बीच (मन्थानावस्था) में रहे हुए केवलज्ञानी अनगार के तैजस् और कार्मण शरीर का जो बन्ध होता है, उसे प्रत्युत्पन्न-प्रयोग-प्रत्ययिक बन्ध कहते हैं। से जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जकालं, सेत्तं देससाहणणा-बंधे। प. से किं तं सव्वसाहणणाबंधे? उ. सव्वसाहणणाबंधे, सेणं खीरोदगमाईणं, सेत्तं सव्वसाहणणाबंधे, सेतं साहणणाबंधे। सेत्तं अल्लियावणबंधे। प. से किं तं सरीरबंधे? उ. सरीरबंधे दुविहे पण्णत्ते,तंजहा १. पुव्वप्पओगपच्चइए य, २. पडुपन्नप्पओगपच्चइए य। प. से किं तं पुव्वप्पओगपच्चइए? उ. पुव्वप्पओगपच्चइए, जं णं नेरइयाणं संसारत्थाणं सव्वजीवाणं तत्थ-तत्थ तेसु-तेसु कारणेसु समोहन्नमाणाणं जीवप्पदेसाणं बंधे समुप्पज्जइ, सेत्तं पुव्वप्पयोगपच्चइए। प. से किं तं पडुप्पन्नप्पओगपच्चइए? उ. पडुप्पन्नप्पओगपच्चइए, जं णं केवलनाणिस्स अणगारस्स केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्स, ताओ समुग्धायाओ पडिनियत्तमाणस्स अंतरामथे वट्टमाणस्स तेया-कम्माणं बंधे समुप्पजइ।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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