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________________ पुद्गल अध्ययन १८७५ प. किं कारणं? उ. ताहे से पएसा एगत्तीगया भवंतीत्ति, सेत्तं पडुप्पन्नप्पयोगपच्चइए, से तं सरीरबंधे। -विया. स.८, उ.९, सु. १२-२३ सरीरप्पयोगबंधस्स भेयाप. से किं तं सरीरप्पयोगबंधे? उ. सरीरप्पयोगबंधे पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे, २. वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे, ३. आहारगसरीरप्पयोगबंधे, ४. तेयगसरीरप्पयोगबंधे, ५. कम्मगसरीरप्पयोगबंधे। -विया. स. ८, उ. ९, सु. २४ ११४. ओरालियसरीरप्पयोगबंधस्स वित्थरओ परूवर्ण प. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे, २. बेइंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे, ३. तेइंदियओरालिय सरीरप्पयोग बंधे, ४. चउरिंदियओरालियसरीरप्पयोग बंधे, ५. पंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे। प. एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गौयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा प्र. (तैजस और कार्मण शरीर के बन्ध होने का) क्या .कारण है? उ. क्योंकि उस समय वे प्रदेश एकत्रित हुए रहते हैं। यह प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्ययिक बन्ध का स्वरूप है। यह शरीर बन्ध का कथन है। ११३. शरीरप्रयोगबन्ध के भेद प्र. भंते ! शरीरप्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! शरीरप्रयोगबन्ध पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा१. औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध, २. वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध, ३. आहारकशरीरप्रयोगबन्ध, ४. तैजस्शरीरप्रयोगबन्ध, ५. कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध। ११४. औदारिक शरीरप्रयोगबन्ध का विस्तार से प्ररूपण प्र. भंते ! औदारिक शरीरप्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर प्रयोग बन्ध, २. द्वीन्द्रिय-औदारिकशरीर प्रयोग बन्ध, ३. त्रीन्द्रिय-औदारिक शरीर प्रयोग बन्ध, ४. चतुरिन्द्रिय-औदारिकशरीर प्रयोग बन्ध, ५. पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर प्रयोग बन्ध। प्र. भंते ! एकेन्द्रिय औदारिक-शरीरप्रयोग बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह (एकेन्द्रिय औदारिकशरीर प्रयोगबन्ध) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथाप्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें पद में अवगाहना संस्थान की अपेक्षा औदारिक शरीर के जो भेद कहे गए हैं, वैसे ही यहाँ पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध से पर्याप्त-गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध और अपर्याप्त गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर प्रयोगबन्ध पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! सवीर्यता, सयोग्यता और सद्व्यता से, प्रमाद के कारण, कर्म, योग, भव और आयु आदि हेतुओं की अपेक्षा औदारिक शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से औदारिक शरीरप्रयोग बन्ध होता है। प्र. एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! पूर्वोक्त-कथनानुसार यहाँ भी जानना चाहिए। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक शरीरप्रयोगबन्ध के लिए कहना चाहिए। पुढविक्काइयएगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे, एवं एएणं अभिलावेणं भेदा जहा ओगाहणसंठाणे ओरालियसरीरस्स तहा भाणियव्वा जाव पज्जत्तगब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तगब्भ वक्कंतियमणुस्स पंचिदिय-ओरालियसरीरप्पयोगबंधेय। प. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मरस उदएणं? उ. गोयमा ! वीरियसजोगसद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च पडुच्च ओरालियसरीरप्पयोगनामकम्मस्स उदएणं ओरालिय सरीरप्पयोगबंधे। प. एगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! एवं चेव। पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे एवं चेव।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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