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________________ पुद्गल अध्ययन १८६७ 'दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति।' प. कम्हा दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति? उ. दोण्हं परमाणु पोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए, तम्हा दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति, ते भिज्जमाणा दुहा कज्जति, दुहा कज्जमाणाएगयओ परमाणु पोग्गले, एगयओ परमाणु पोग्गले भवइ। तिण्णि परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति। प. कम्हा तिण्णि परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति? उ. तिण्हं परमाणु पोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए, तम्हा तिण्णि परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति। ते भिज्जमाणा दुहा वि, तिहा वि कति। दुहा कज्जमाणा एगयओ परमाणु पोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ। तिहा कज्जमाणा तिण्णि परमाणु पोग्गला भवंति, एवं चत्तारि। पंच परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति, एगयओ साहण्णित्ता खंधत्ताए कज्जति, खंधे वि य णं से असासए सया समियं उवचिज्जइ य अवचिज्जइय। -विया. स.१, उ.१०, सु.१ १०४. निक्खेव विहिणा खंधस्स परूवणं प. से किं तं खंधे? उ. खंधे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. नामखंधे, २.ठवणाखंधे, ३. दव्वखंधे, ४. भावखंधे। प. से किं तं नाम खंधे? उ. नामखंधे जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जाव खंधे ति णामं कज्जइ,से तंणामखंधे। प. से किं तं ठवणाखंधे? उ. ठवणाखंधे जण्णं कट्ठकम्मे वा जाव वराडे इ वा एगो वा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा खंधे इठवणा ठविज्जइ,से तंठवणाखंधे। प. णाम-ठवणाणं को पइविसेसो? उ. नामं आवकहियं ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। 'दो परमाणुपुद्गल एक साथ चिपक जाते हैं।' प्र. दो परमाणु पुद्गल एक साथ क्यों चिपक जाते हैं ? उ. दोनों परमाणु पुद्गलों में चिकनापन है, इसलिए दो परमाणु पुद्गल एक साथ चिपक जाते हैं। उन दो परमाणु पुद्गलों के दो भाग किये जा सकते हैं, उन दो परमाणु पुद्गलों के दो विभाग किये जावें तोएक ओर एक परमाणु पुद्गल रहता है। एक ओर एक परमाणु पुद्गल रहता है। तीन परमाणु पुद्गल एक साथ चिपकते हैं। प्र. तीन परमाणु पुद्गल एक साथ क्यों चिपक जाते हैं ? उ. तीन परमाणु पुद्गलों में चिकनापन है, इसलिए तीन परमाणु पुद्गल एक साथ चिपक जाते हैं। तीन परमाणु पुद्गलों के विभाग किये जावें तो-दो विभाग भी होते हैं और तीन विभाग भी होते हैं। दो विभाग किये जाने पर एक ओर एक परमाणु पुद्गल रहता है। एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध होता है। तीन विभाग करने पर तीन परमाणु पुद्गल होते हैं। इसी प्रकार चारों परमाणु पुद्गलों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। पाँच परमाणु पुद्गल एक साथ चिपक जाते हैं। एक साथ चिपककर स्कन्ध बन जाते हैं। वह स्कन्ध अशाश्वत है और वह सदा सम्यक् प्रकार से उपचय तथा अपचय को प्राप्त होता है। १०४. निक्षेप विधि से स्कन्ध का प्ररूपण प्र. स्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. स्कन्ध चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. नामस्कन्ध, २. स्थापना स्कन्ध, ३. द्रव्य स्कन्ध, ४. भावस्कन्ध। प्र. नामस्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. जिस किसी जीव या अजीव का यावत् 'स्कन्ध' यह नाम रखा जाता है, उसे नामस्कन्ध कहते हैं। प. स्थापनास्कन्ध का क्या स्वरूप है? उ. काष्ठकर्म यावत् वराटक में एक अथवा अनेक स्कन्ध की सद्भाव या असद्भाव रूप से स्थापना की जाती है वह स्थापनास्कन्ध है। प्र. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है? उ. नाम यावत्कथिक (वस्तु के अस्तित्व रहने तक) होता है परन्तु स्थापना इत्वरिक (स्वल्पकालिक) और यावत्कथिक दोनों प्रकार की होती है। प्र. द्रव्यस्कन्ध का क्या. स्वरूप है? उ. द्रव्यस्कन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. आगम से द्रव्य स्कन्ध, २. नो आगम से द्रव्य स्कन्ध। प. से किं तं दव्वखंधे? उ. दव्वखंधे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. आगमओय, २. नो आगमओय।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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