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________________ १८६६ उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिओगे। प. अनंतपएसिया णं भंते! खंधा कक्खडफासपज्जवेहिं किं जुम्मा, तेओगा, दावरजुम्मा, कलिओगा ? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाय सिय कलिओगा, विहाणादे से कम्मा वि जाव कलिओगा वि । एवं मउय गरु लहुयावि भाणियच्या, सीय-उसिण- निद्ध-लुक्खा जहा वन्ना । - विया. स. २५, उ. ४, सु. १५४-१७३ १०३. अण्णउत्थियाणं खंधस्स साहरण भेयस्स धारणा निराकरण परूवणं अण्णउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति दो परमाणु पोग्गला एगयओ न साहण्णंति । प. कम्हा दो परमाणु पोग्गला एगयओ न साहणंति ? उ. दोन्हं परमाणुपोग्गलाणं नत्थि सिणेहकाए, तम्हा दो परमाणु पोग्ला एगयओ न साहण्णंति, तिणि परमाणु पोग्गला एगवओ साहण्णति । प. कम्हा तिष्णि परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णति ? उ. तिन्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए, तम्हा तिष्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णति, ते भिज्जमाणा हा वि, तिहा विकज्जति । दुहा कज्जमाणा एगयओ दिवड्ढे परमाणु पोग्गले भवइ, एगयओ वि दिवड्ढे परमाणु पोग्गले भवइ । तिहा कज्जमाणा तिणि परमाणु पोग्गला भवति, एवं चतारि पंच परमाणु पोग्गला एगयओ साहण्णंति एगयओ साहण्णित्ता दुक्खत्ताए कज्जति । दुक्ख वि य ण से सासए सया समियं उवचिज्जइ य अवचिज्जइ य । प. से कहमेयं भंते ! एवं ? उ. गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खति जाव एवं परूवेंति दो परमाणु पोग्गला एगयओ न साहण्णंति जावदुक्खे वि य णं सासए सया समियं उवचिज्जइ य अवचिज्जइ य । ते एवमाहंसु मिच्छाते एवमाहंसु, अहं पुण एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि द्रव्यानुयोग - ( ३ ) उ. गौतम | वह कदाचित् कृतयुग्म है यावत् कदाचित् कल्योज है। प्र. भंते! (बहुत) अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कर्कश स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा क्या कृतयुग्म, ज्योज, द्वापरयुग्म और कल्पोज हैं? उ. गौतम ! सामान्यादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं यावत् कदाचित् कल्योज हैं, विशेषादेश से कृतयुग्म भी है यावत् कल्पोज भी हैं। इसी प्रकार मृदु, गुरु और लघु स्पर्श के सम्बन्ध में कहना चाहिए। शीत, उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष स्पर्शो का वर्णों के समान कथन करना चाहिए। १०३. अन्यतीर्थिकों की स्कन्ध के संघात और भेद की धारणा निराकरण का प्ररूपण भंते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं- यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि 'दो परमाणुपुद्गल' एक साथ नहीं चिपकते हैं। प्र. दो परमाणु पुद्गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते हैं? उ. दो परमाणु पुद्गलों में चिकनापन नहीं है। इसलिए दो परमाणुपुद्गल चिपकते नहीं है। तीन परमाणु पुद्गल एक साथ चिपकते हैं। प्र. तीन परमाणु- पुद्गल एक साथ क्यों चिपकते हैं ? उ. तीन परमाणु-पुद्गलों में चिकनापन है। इसलिए तीन परमाणु-पुद्गल एक साथ चिंपकते हैं। तीन परमाणुपुद्गलों के दो विभाग भी होते हैं और तीन विभाग भी होते हैं। दो विभाग किये जायें तो एक ओर डेढ़ परमाणु होता है और दूसरी तरफ भी डेढ़ परमाणु होता है। तीन विभाग किये जावें तो अलग-अलग तीन परमाणु पुद्गल हो जाते हैं। इसी प्रकार चार परमाणु- पुद्गलों के संबंध में कहना चाहिए। पाँच परमाणु पुद्गल एक साथ चिपक जाते हैं, एक साथ चिपक कर वे दुख रूप में परिणत हो जाते हैं। वह दुःख शाश्वत है और सदा सम्यक् प्रकार से उपचय तथा अपचय को प्राप्त होता है। प्र. भंते! अन्यतीर्थिकों का यह कथन कैसा है ? उ. गौतम ! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं यावत् इस प्रकार जो प्ररूपणा करते हैं कि 'दो परमाणु पुद्गल एक साथ नहीं चिपकते हैं यावत् वह दुःख शाश्वत है, सदा सम्यक् प्रकार से उपचय तथा अपचय को प्राप्त होता है। उन्होंने जो इस प्रकार कहा है वह मिथ्या कहा है। गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता है कि
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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