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________________ पुद्गल अध्ययन १८६५ प्र. भंते ! क्या (बहुत) द्विप्रदेशी स्कन्ध कृतयुग्म प्रदेशावगाढ है यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ हैं ? उ. गौतम ! सामान्यादेश से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है किन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज प्रदेशावगाढ नहीं हैं। विशेषादेश से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ और त्र्योज प्रदेशावगाढ नहीं हैं किन्तु द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ भी हैं और कल्योज प्रदेशावगाढ भी हैं। प्र. भंते ! क्या (बहुत) त्रिप्रदेशी स्कन्ध कृतयुग्म प्रदेशावगाढ है यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ हैं ? उ. गौतम ! सामान्यादेश से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ हैं किन्तु योज, द्वापरयुग्म और कल्योज प्रदेशावगाढ नहीं हैं। विशेषादेश से कृतयुग्मप्रदेशावगाढ नहीं हैं किन्तु योज, द्वापरयुग्म और कल्योज प्रदेशावगाढ हैं। प्र. भंते ! क्या (बहुत) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध कृतयुग्म प्रदेशावगाढ हैं यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ हैं ? उ. गौतम ! सामान्यादेश से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ है, किन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म या कल्योज प्रदेशावगाढ नहीं हैं। प. दुपएसिया णं भंते ! खंधा किं कडजुम्मपएसोगाढा जाव कलिओगपएसोगाढा? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा, नो तेओगपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, नो कलिओगपएसोगाढा, विहाणादेसेणं नो कडजुम्मपएसोगाढा, नो तेओगपएसोगाढा, दावरजुम्मपएसोगाढा वि, कलिओगपएसोगाढा वि। प. तिपएसिया णं भंते ! खंधा किं कडजुम्मपएसोगाढा जाव कलिओगपएसोगाढा? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा, नो तेओगपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, नो कलिओगपएसोगाढा, विहाणादेसेणं नो कडजुम्मपएसोगाढा, तेओगपएसोगाढा वि, दावरजुम्मपएसोगाढा वि, कलिओगपएसोगाढा वि, प. चउप्पएसिया णं भंते ! खंधा किं कडजुम्मपएसोगाढा जाव कलिओगपएसोगाढा? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा, नो तेओगपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढा, नो कलिओगपएसोगाढा, विहाणादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा वि जाव कलिओगपएसोगाढा वि। एवं जाव अणंतपएसिया। प. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं कडजुम्मसमयट्ठिईए जाव कलिओगसमयट्ठिईए? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मसमयट्ठिईए जाव सिय कलिओगसमयट्ठिईए, एवं जाव अणंतपएसिए। प. परमाणुपोग्गला णं भंते ! किं कडजुम्मसमयट्ठिईया जाव कलिओगसमयट्ठिईया? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं-सिय कडजुम्मसमयट्ठिईया जाव सिय कलिओगसमयट्ठिईया, विहाणादेसेणं कडजुम्मसमयट्टिईया वि जाव कलिओगसमयट्ठिईया वि, एवं जाव अणंतपएसिया। प. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कालवन्नपज्जवेहिं किं कडजुम्मे, तेओगे, दावरजुम्मे, कलिओगे? उ. गोयमा ! जहा ठिईए वत्तव्वया एवं वन्नेसु वि सव्वेसु, गंधेसु वि। एवं रसेसु विजाव महुरो रसो त्ति। विशेषादेश से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ भी हैं यावत् कल्योजप्रदेशावगाढ भी हैं। इसी प्रकार अनन्त प्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त कहना चाहिए।' प्र. भंते ! क्या (एक) परमाणु-पुद्गल कृतयुग्म समय की स्थिति वाला है यावत् कल्योज समय की स्थिति वाला है? उ. गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म समय की स्थिति वाला है यावत् कदाचित् कल्योज समय की स्थिति वाला है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या (बहुत) परमाणु-पुद्गल कृतयुग्म समय की स्थिति वाले हैं यावत् कल्योज समय की स्थिति वाले हैं ? उ. गौतम ! सामान्यादेश से कदाचित् कृतयुग्म समय की स्थिति वाले हैं यावत् कदाचित् कल्पोज समय की स्थिति वाले हैं। विशेषादेश से कृतयुग्म समय की स्थिति वाले भी है यावत् कल्योज समय की स्थिति वाले भी हैं। इसी प्रकार अनन्त प्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! (एक) परमाणु-पुद्गल कृष्णवर्ण पर्यायों की अपेक्षा क्या कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज है? उ. गौतम ! जिस प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में कहा है उसी प्रकार सभी वर्गों और गंधों के लिए भी कहना चाहिए।' इसी प्रकार मधुर रस पर्यन्त सभी रसों के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! (एक) अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कर्कश स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा क्या कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज है? प. अणंतपएसिए णं भंते ! खंधे कक्खडफासपज्जवेहिं किं कडजुम्मे, तेओगे, दावरजुम्मे, कलिओगे?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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