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________________ १८५८ द्रव्यानुयोग-(३) उ. गोयमा ! अणंतपएसिएहिंतो खंधेहितो असंखेज्ज- उ. गौतम ! अनन्त प्रदेशी स्कन्धों से असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध द्रव्य पएसिया खंधा दव्वट्ठयाए बहुया। विवक्षा से बहुत हैं। पएसट्ठयाए प्रदेश की अपेक्षाप. एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं दुपएसियाण य खंधाणं प्र. भंते ! इन परमाणु-पुद्गलों के और द्विप्रदेशिक स्कन्ध में प्रदेश पएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो बहुया? विवक्षा से कौन किससे बहुत हैं ? उ. गोयमा ! परमाणुपोग्गलेहिंतो दुपएसिया खंधा उ. गौतम ! परमाणु-पुद्गलों से द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रदेश विवक्षा पएसट्ठयाए बहुया। से बहुत हैं। एवं एएणं गमएणं जाव नवपएसिएहिंतो खंधेहितो इसी प्रकार इस पाठ के अनुसार नवप्रदेशिक स्कन्धों से दस दसपएसिया खंधा पएसट्ठयाए बहुया। प्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त प्रदेश विवक्षा से बहुत हैं। एवं सव्वत्थ पुच्छियव्वं, इस प्रकार सर्वत्र प्रश्न करना चाहिए। दसपएसिएहिंतो खंधेहिंतो संखेज्जपएसिया खंधा दस प्रदेशी स्कन्धों से संख्यात प्रदेशी स्कन्ध प्रदेश विवक्षा से पएसट्ठयाए बहुया, बहुत हैं। संखेज्जपएसिएहितो खंधेहितो असंखेज्जपएसिया खंधा संख्यात प्रदेशी स्कन्धों से असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध प्रदेश पएसट्ठयाए बहुया। विवक्षा से बहुत हैं। प. एएसि णं भंते ! असंखेज्जपएसियाण य खंधाणं प्र. भंते ! इन असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों और अनन्त प्रदेशी स्कन्धों अणंतपएसियाण य खंधाणं पएसट्ठयाए कयरे में प्रदेश विवक्षा से कौन किससे बहुत हैं ? कयरेहिंतो बहुया? उ. गोयमा ! अणंतपएसिएहिंतो खंधेहितो असंखेज्ज- उ. गौतम ! अनन्त प्रदेशी स्कन्धों से असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध पएसिया खंधा पएसट्ठयाए बहुया। प्रदेश विवक्षा से बहुत हैं। -विया.स.२५, उ.४, सु. ९६-१०५ ९६. परमाणुपोग्गलाणं खंधाण य ओगाहणं ठिई च पडुच्च ९६. परमाणु पुद्गलों और स्कन्धों की अवगाहना स्थिति द्वारा द्रव्य दव्वट्ठ-पएसट्टयाए विसेसाहियत्ताइ परूवणं व प्रदेश विवक्षा से विशेषाधिक आदि का प्ररूपणप. एएसि णं भंते ! एगपएसोगाढाणं दुपएसोगाढाण य प्र. भंते ! इन एक प्रदेश में रहे हुए और दो प्रदेशों में रहे हुए पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए कयरे कयरेहितो विसेसाहिया? पुद्गलों में द्रव्य विवक्षा से कौन किससे विशेषाधिक हैं ? उ. गोयमा ! दुपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहिंतो एगपएसोगाढा उ. गौतम ! दो प्रदेशों में रहे हुए पुद्गलों से एक प्रदेश में रहे हुए पोग्गला दव्वट्ठयाए विसेसाहिया। पुद्गल द्रव्य विवक्षा से विशेषाधिक हैं। एवं एएणं गमएणं इसी प्रकार इस अभिलापानुसारतिपएसोगादेहितो पोग्गलहितो दुपएसोगाढा पोग्गला तीन प्रदेशों में रहने वाले पुद्गलों से दो प्रदेशों में रहने वाले दव्वट्ठयाए विसेसाहिया जाव दसपएसोगाढेहितो पुद्गल द्रत्य विवक्षा से विशेषाधिक हैं यावत्-दस प्रदेशों में पोग्गलेहिंतो नवपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठयाए रहने वाले पुद्गलों से नव प्रदेशों में रहने वाले पुद्गल द्रव्य विसेसाहिया, विवक्षा से विशेषाधिक हैं, दसपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहितो संखेज्जपएसोगाढा दस प्रदेशों में रहने वाले पुद्गलों से संख्यात प्रदेशों में रहने पोग्गला दव्वट्ठयाए बहुया। वाले पुद्गल द्रव्य विवक्षा से बहुत हैं। संखेज्जपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहितो असंखेज्ज संख्यात प्रदेशों में रहने वाले पुद्गलों से असंख्यात प्रदेशों में पएसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठयाए बहुया। रहने वाले पुद्गल द्रव्य विवक्षा से बहुत हैं। पुच्छा सव्वत्य भाणियव्वा। सर्वत्र प्रश्न (स्वतः) कहने चाहिए। प. एएसि णं भंते ! एगपएसोगाढाणं दुपएसोगाढाण य प्र. भंते ! इन एक प्रदेश में और दो प्रदेश में रहते हुए पुद्गलों में पोग्गलाणं पएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो विसेसाहिया ? प्रदेश विवक्षा से कौन-किससे विशेषाधिक हैं ? उ. गोयमा ! एगपसोगाढेहितो पोग्गलेहिंतो दुपएसोगाढा उ. गौतम ! एक प्रदेश में रहते हुए पुद्गलों से दो प्रदेशों में रहे पोग्गला पएसट्ठयाए विसेसाहिया, हुए पुद्गल प्रदेश विवक्षा से विशेषाधिक हैं। एवं जाव इसी.प्रकार यावत्नवपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहिंतो दसपएसोगाढा पोग्गला नौ प्रदेशों में रहे हुए पुद्गलों से दस प्रदेशों में रहे हुए पुद्गल पएसट्ठयाए विसेसाहिया। प्रदेश विवक्षा से विशेषाधिक हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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