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________________ १८५४ ११. परमाणुपोग्गला सव्वेया दव्वट्ठ अपएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, १२. संखेज्जपएसिया खंधा देसेया दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, १३. ते चेव पएसट्ट्याए असंखेज्जगुणा, १४. असंखेज्जपएसिया खंधा देसेया दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, १५. ते चेव पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, १६. परमाणुपोग्गला निरेया दव्वट्ठ अपएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, १७. संखेज्जपएसिया खंधा निरेया दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, १८. ते चेव पएसट्ठयाए संखेज्जगुणा, १९. असंखेज्जपएसिया खंधा निरेया दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, २०. ते चेव पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा। -विया. स.२५, उ.४, सु. २४५ ९०. एगत्त पुहत्त विवक्खया परमाणुपोग्गल खंधाण य सेय-निरेय परूवणंप. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सेए, निरेए? द्रव्यानुयोग-(३) ११. द्रव्यों तथा अप्रदेशों की अपेक्षा सर्वकम्पक परमाणु पुद्गल असंख्यातगुणे हैं, १२. द्रव्यों की अपेक्षा देश कम्पक संख्यात प्रदेशी स्कन्ध असंख्यातगुणे हैं, १३. वे ही प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं, १४. द्रव्यों की अपेक्षा देशकम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध असंख्यातगुणे हैं, १५. वे ही प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं, १६. द्रव्यों की तथा अप्रदेशों की अपेक्षा निष्कम्पक परमाणु पुद्गल असंख्यातगुणे हैं, १७. द्रव्यों की अपेक्षा निष्कम्पक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध संख्यातगुणे हैं, १८. वे ही प्रदेशों की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं, १९. द्रव्यों की अपेक्षा निष्कम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध असंख्यातगुणे हैं, २०. वे ही प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं। उ. गोयमा ! सिय सेए, सिय निरेए। एवंजाव अणंतपएसिए। प. परमाणुपोग्गला णं भंते ! किं सेया, निरेया? उ. गोयमा ! सेया वि,निरेया वि, एवं जाव अणंतपएसिया। -विया.स.२५, उ.४,सु.१८९-१९२ ९१. सेय-निरेय परमाणुपोग्गल खंधाणं ठिई परूवणं ९०. एकत्व बहुत्व की विवक्षा से परमाणु पुद्गल और स्कन्धों के सकम्प-निष्कम्प का प्ररूपणप्र. भंते ! (एक) परमाणु-पुद्गल सैज (सकम्प) है या निरेज (निष्कम्प) है? उ. गौतम ! वह कदाचित् सकम्प है और कदाचित् निष्कम्प है। इसी प्रकार एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! (बहुत) परमाणु-पुद्गल सकम्प हैं या निष्कम्प हैं ? उ. गौतम ! वे सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं। इसी प्रकार अनन्तप्रेदशी स्कन्धों पर्यन्त जानना चाहिए। प. परमाणुपोग्गले णं भंते ! सेए कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भागं। प. परमाणुपोग्गले णं भंते ! निरेए कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, ९१. सकम्प-निष्कम्प परमाणु पुद्गल स्कन्धों की स्थिति का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल कितने काल तक सकम्प रहता है? उ. गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक (सकम्प) रहता है। प्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल कितने काल तक निष्कम्प रहता है ? उ. गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक (निष्कम्प) रहता है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! (बहुत) परमाणु-पुद्गल कितने काल तक सकम्प रहते हैं? उ. गौतम ! वे सदैव सकम्प रहते हैं। प्र. भंते ! (बहुत) परमाणु-पुद्गल कितने काल तक निष्कम्प रहते हैं ? उ. गौतम ! वे सदैव निष्कम्प रहते हैं। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्धों पर्यंत जानना चाहिए। एवं जाव अणंतपएसिए। प. परमाणुपोग्गलाणं भंते ! सेया कालओ केवचिरं होंति? उ. गोयमा ! सव्वद्ध। प. परमाणुपोग्गलाणं भंते ! निरेया कालओ केवचिरं होति? उ. गोयमा ! सव्वद्धं, एवं जाव अणंतपएसिया। -विया.स.२५, उ.४,सु.१९३-१९८
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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