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________________ पुद्गल अध्ययन १८४७ इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों पर्यंत जानना चाहिए। प्र. भंते ! क्या अनन्त प्रदेशी स्कन्ध अग्निकाय के बीच में प्रवेश कर सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह प्रवेश कर सकता है। प्र. भंते ! क्या वह (अग्नि में) जल सकता है? उ. गौतम ! कोई जल सकता है और कोई नहीं जल सकता है। एवं जाव असंखेज्जपएसिओ। प. अणंतपएसिए णं भंते ! खंधे अगणिकायस्स मज्झं मज्झेणं वीइवएज्जा? उ. हंता, गोयमा ! वीइवएज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ झियाएज्जा? उ. गोयमा ! अत्थेगइए झियाएज्जा, अत्थेगइए नो झियाएज्जा। प. से णं भंते ! पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा? उ. हंता, गोयमा ! वीइवएज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ उल्लेसिया। उ. गोयमा ! अत्थेगइए उल्लेसिया, अत्थेगइए नो उल्लेसिया। प. से णं भंते ! गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा? उ. हंता, गोयमा ! हव्वमागच्छेज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ विणिहायमावज्जेज्जा? उ. गोयमा ! अत्थेगइए विणिहायमावज्जेज्जा, अत्थेगइए नो विणिहायमावज्जेज्जा। प. से णं भंते ! उदगावत्तं वा, उदगबिन्दु वा ओगाहेज्जा? उ. हंता, गोयमा ! ओगाहेज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ परियावज्जेज्जा? उ. गोयमा ! अत्थेगइए परियावज्जेज्जा, अत्थेगइए नो परियावज्जेज्जा। -विया. स. ५, उ. ७, सु. ३-८ ८२. परमाणु-पोग्गल खंधाणं एयणाइ परूवणंप. परमाणुपोग्गले णं भंते ! एयइ, वेयइ, चलइ, फंदइ, घट्टइ, खुब्भइ, उदीरइ,तं तं भावं परिणमइ? प्र. भंते !क्या वह पुष्कर संवर्तक नामक महामेघ के बीच में प्रवेश कर सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह प्रवेश कर सकता है। प्र. भंते ! वह (महामेघ में) भीग सकता है? उ. गौतम ! कोई भीग सकता है और कोई नहीं भीग सकता है। प्र. भंते ! क्या वह गंगा महानदी के प्रतिस्रोत में गमन कर सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह गमन कर सकता है। प्र. भंते ! क्या वह विनष्ट हो सकता है? उ. गौतम ! कोई विनष्ट हो सकता है और कोई विनष्ट नहीं हो सकता है। प्र. भंते ! क्या वह उदकावर्त और उदकबिन्दु में अवगाहन करके रह सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह अवगाहन करके रह सकता है। प्र. भंते ! क्या वह रूपान्तर में परिणत हो सकता है? उ. गौतम ! कोई परिणत हो सकता है और कोई परिणत नहीं हो सकता है। ८२. परमाणु पुद्गल स्कन्धों के कम्पन आदि का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या परमाणु पुद्गल कांपता है, विशेष रूप से कांपता है, चलता है, फड़कता है, मिलता है, क्षुभित होता है, उदीरित होता है और उस-उस भाव में परिणत होता है? उ. हाँ, गौतम ! १. परमाणु पुद्गल कदाचित् कांपता है यावत् उदीरित होता है और उस-उस भाव में परिणत होता है, २. परमाणु पुद्गल कदाचित् नहीं कांपता है यावत् उदीरित नहीं होता है और उस-उस भाव में परिणत नहीं होता है। प्र. भंते ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध कांपता है यावत् उदीरित होता है और उस-उस भाव में परिणत होता है? उ. गौतम ! १. कदाचित् कांपता है यावत् उदीरित होता है और उस-उस भाव में परिणत होता है। २. कदाचित् नहीं कांपता है यावत् उदीरित नहीं होता है और उस-उस भाव में परिणत नहीं होता है। ३. कदाचित् एक अंश से कांपता है और एक अंश से नहीं कांपता है। प्र. भंते ! क्या त्रिप्रदेशिक स्कन्ध कांपता है और नहीं कांपता है? उ. गौतम ! १. कदाचित् कांपता है, २. कदाचित् नहीं कांपता है, उ. हंता, गोयमा ! १. सिय एयइ जाव उदीरइ, तं तं भावं परिणम २. सिय नो एयइ जाव नो उदीरइ, नो तं तं भावं परिणमई। प. दुपएसिए णं भंते ! खंधे एयइ जाव उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ? उ. गोयमा ! १. सिय एयइ जाव उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ, २. सिय नो एयइ जाव नो उदीरइ, नो तं तं भावं परिणमइ, ३. सिय देसे एयइ, देसे नो एयइ। प. तिपएसिए णं भंते ! खंधे एयइ, नो एयइ। उ. गोयमा ! १.सिय एयइ, २. सिय नो एयइ,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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