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________________ १८४६ ८१. परमाणु पोग्गल खंधाणं असिधाराइसु ओगाहणाइ परूवणं- प. परमाणु पोग्गले णं भंते ! असिधार वा, खुरधार वा, ओगाहेज्जा? . उ. हंता, गोयमा ! ओगाहेज्जा। प. सेणं भंते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा, भिज्जेज्ज वा? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। एवं जाव असंखेज्जपएसिओ। प. अणंतपएसिए णं भंते ! खंधे असिधारं वा, खुरधारं वा ओगाहेज्जा? उ. हंता, गोयमा ! ओगाहेज्जा।। प. सेणं भंते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा,भिज्जेज्ज वा।। उ. गोयमा ! अत्थेगइए छिज्जेज्ज वा, भिज्जेज्ज वा, अत्थेगइए नो छिज्जेज्ज वा,नो भिज्जेज्ज वा। प. परमाणु पोग्गले णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीइवएज्जा? उ. हंता,गोयमा ! वीइवएज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ झियाएज्जा? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। द्रव्यानुयोग-(३) ८१. परमाणु-पुद्गल स्कन्धों का असिधारादि पर अवगाहनादि का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या परमाणु पुद्गल तलवार की धार या छुरे की धार पर अवगाहन करके रह सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह अवगाहना करके रह सकता है। प्र. भंते ! क्या वह छेदा-भेदा जा सकता है ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उस पर शस्त्र का प्रयोग नहीं हो सकता है। इसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त (शस्त्र प्रयोग न होने से) जानना चाहिए। प्र. भंते ! क्या अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तलवार की धार या छुरे की धार पर अवगाहन करके रह सकता है? . उ. हाँ, गौतम ! वह अवगाहन करके रह सकता है। प्र. भंते ! क्या वह छेदा-भेदा जा सकता है? उ. गौतम ! कोई अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न-भिन्न हो सकता है, कोई छिन्न-भिन्न नहीं हो सकता है। प्र. भंते ! क्या परमाणु पुद्गल अग्निकाय के बीच में प्रवेश कर सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह प्रवेश कर सकता है। प्र. भंते ! क्या वह (अग्नि में) जल सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उस पर शस्त्र का प्रयोग नहीं हो सकता है। (अर्थात् अग्नि से नहीं जल सकता है।) प्र. भंते ! क्या वह पुष्कर संवर्तक नामक महामेघ के बीच में प्रवेश कर सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह प्रवेश कर सकता है। प्र. भंते ! क्या वह (महामेघ में) भीग सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि उस पर शस्त्र का प्रयोग नहीं हो सकता है (अर्थात् वह भीग नहीं सकता है।) प्र. भंते ! क्या वह गंगा महानदी के प्रतिस्रोत (विपरीत प्रवाह) में गमन कर सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह (विपरीत प्रवाह) में गमन कर सकता है। प्र. भंते ! क्या वह विनष्ट हो सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उस पर शस्त्र का प्रयोग नहीं हो सकता है (अर्थात् विनष्ट नहीं हो सकता है।) प्र. भंते ! क्या वह उदकावर्त और उदक बिन्दु में अवगाहन करके रह जाता है? उ. हाँ, गौतम ! वह अवगाहन करके रह सकता है। प्र. भंते ! क्या वह रूपान्तर में परिणत हो सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उस पर शस्त्र का प्रयोग नहीं हो सकता है। (अर्थात् वह रूपान्तर में परिणत नहीं हो सकता है।) प. से णं भंते ! पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा? उ. हंता,गोयमा ! वीइवएज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ उल्लेसिया? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। प. सेणं भंते ! गंगाए महाणदीए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा? 'उ. हंता, गोयमा ! हव्वमागच्छेज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ विणिहायमावज्जेज्जा? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। प. से णं भंते ! उदगावत्तं वा, उदगबिंदु वा ओगाहेज्जा? उ. हंता, गोयमा ! ओगाहेज्जा। प. से णं भंते ! तत्थ परियावज्जेज्जा? उ. गोयमा ! नो इणढे समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कम।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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