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________________ पुद्गल अध्ययन १९. देसा आइट्ठा सब्भावपज्जवा, देसे आइठे असब्भावपज्जवे, देसे आइ8 तदुभयपज्जवे, चउप्पएसिए खंधे आयाओ य नो आया य, अवत्तव्वं-आया इयनो आया इय, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"चउप्पएसिए खंधे, १. सिय आया जाव १९. सिय आयाओ य, नो आया य, अवत्तव्वं-आया इ य नो आया इय, प. आया भन्ते ! पंचपएसिए खंधे, अन्ने पंचपएसिए खंधे? उ. गोयमा ! पंचपएसिए खंधे १. सिय आया, २. सिय नो आया, ३. सिय अवत्तव्वं-आया इय,नो आया इय, ४-७.सिय आया य,नो आया य, चउभंगो ८-११.सिय आया य अवत्तव्यं, चउभंगो १२-१५.सिय नो आया य अवत्तव्वेण य, चउभंगो १६.सिय आया य,नो आया य,अवत्तव्वं आया इय,नो आयाइय। १७.सिय आया य, नो आया य,अवत्तव्वाई आयाओ य, नो आयाओ य। १८.सिय आया य, नो आया य,अवत्तव्यं आया इ य,नो आया इय। १९.सिय आया य, नो आया य, अवत्तव्यं आयाओ य, नो आयाओय। २०. सिय आयाओ य, नो आया य, अवत्तव्यं आया इ य,नो आया इय। २१.सिय आयाओ य, नो आया य, अवत्तव्यं आयाओ य, नो आयाओय। २२. सिय आयाओ य, नो आयाओ य, अवत्तव्यं आया इ य,नो आया इय। प. से केणठेणं भंते !एवं वुच्चइ "पंचपएसिए खंधे १. सिय आया जाव २२. सिय आयाओ य नो आयाओ य, अवत्तव्यं, आया इ य, नो आया इय?" उ. गोयमा ! १. अप्पणो आइठे आया, २. परस्स आइ8 नो आया, ३. तदुभयस्स आइठे अवत्तव्वं, ४-१५. देसे आइठे सब्भावपज्जवे, देसे आइठे असब्भावपज्जवे, एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडंति,(दुवालस भंगा) - १८४३ ) १९. सद्भाव-पर्याय वाले अनेक देशों की अपेक्षा, असद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा तथा तदुभयपर्याय वाले एक देश की अपेक्षा चतुष्पदेशी स्कन्ध सद्प है, असद्प है और सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"चतुष्प्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्प है यावत् १९. कथंचित् अनेक सद्प हैं, एक असद्सप है और एक सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है। प्र. भंते ! पंचप्रदेशी स्कन्ध सद्रूप है या असद्रूप है ? उ. गौतम ! पंचप्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्प है, २. कथंचित् असद्रूप है, ३. कथंचित् सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है, ४-७. कथंचित् सद्रूप और असद्प है (यहाँ भी एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा) चार भंग होते हैं। ८.११. कथंचित् सद्रूप और अवक्तव्य है (यहाँ भी एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा) चार भंग होते हैं। १२-१५. कथंचित् असऐप और अवक्तव्य है। (यहाँ भी एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा) चार भंग होते हैं। १६. कथंचित् सद्प-असद्प और सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है। १७. कथंचित् एक सद्प और एक असद्रूप है और अनेक सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य हैं। १८. कथंचित् एक सद्रूप है, अनेक असदुरूप है और एक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है। १९. कथंचित् एक सद्प है, अनेक असद्रूप होने से अवक्तव्य हैं और सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है। २०. कथंचित् अनेक सद्प हैं, एक असद्प और एक सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है। २१. कथंचित् अनेक सद्प हैं, एक असऐप है और अनेक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य हैं। २२. कथंचित् अनेक सद्रूप हैं और अनेक असदुरूप हैं और एक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "पंचप्रदेशी स्कन्ध-१. कथंचित् सद्प है यावत् २२. कथंचित् अनेक सद्प और अनेक असद्रूप है और एक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है?" उ. गौतम ! पंचेप्रदेशी स्कन्ध १. अपने स्वरूप की अपेक्षा सद्रूप है, २. पर रूप की अपेक्षा असद्रूप है, ३. उभयरूप ही अपेक्षा सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है, ४-१५. सद्भाव-पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा असद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा तथा इसी प्रकार विकसंयोगी में सभी (बारह) भंग बनते हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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