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________________ १८४२ १. सिय आया, २. सिय नो आया, ३. सिय अवत्तव्वं-आया इय नो आया इय, ४-७.सिय आया य,नो आया य,चउभंगो, ८-११.सिय आया य,अवत्तव्यं, चउभंगो, १२-१५.सिय नो आया य,अवत्तव्यं, चउभंगो, १६.सिय आया य, नो आया य, अवत्तव्यं-आया इ य, नो आया इय, १७.सिय आया य, नो आया य, अवत्तव्वाइं-आयाओ य,नो आयाओय, १८. सिय आया य, नो आयाओ य, अवत्तव्वं-आया इ य,नो आया इय, १९.सिय आयाओ य, नो आया य, अवत्तव्वं-आया इ य, नो आया इय, प. से केणढेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ "चउप्पएसिए खंधे, १. सिय आया य जाव १९. सिय आयाओ य, नो आया य, अवत्तव्यं आया इ य नो आया इय?" उ. गोयमा ! चउप्पएसिए खंधे १. अप्पणो आइढे आया, २. परस्स आइट्ठे नो आया, ३. तदुभयस्स आइठे अवत्तव्वं-आया इ य, नो आयाइय, ४-७. देसे आइठे सब्भावपज्जवे, देसे आइट्ठे असब्भावपज्जवे चउभंगो, द्रव्यानुयोग-(३) १. कथंचित् सदरूप है, २. कथंचित् असद्रूप है, ३. कथंचित् सद्रूप असद्प होने से अवक्तव्य है, ४-७.कथंचित् सद्रूप और असदुरूप है यहाँ (एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा) चार भंग होते हैं। ८-११. कथंचित् सद्रूप और अवक्तव्य है (यहाँ एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा) चार भंग होते हैं। १२-१५. कथंचित् असद्रूप और अवक्तव्य है (यहाँ भी एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा) चार भंग होते हैं। १६.कथंचित् सद्रूप-असद्प और सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य हैं, १७.कथंचित् एक सद्रूप है, अनेक असद्रूप हैं और अनेक सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य हैं, १८. कथंचित् एक सद्प है, अनेक असद्रूप हैं और एक सद्-सद्प होने से अवक्तव्य है, १९. कथंचित् अनेक सद्रूप हैं, एक असद्रूप है और एक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "चतुष्प्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्प है यावत् १९. कथंचित् अनेक सद्रूप हैं, एक असदुरूप है और एक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है ?" उ. गौतम ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध १. अपने स्वरूप की अपेक्षा सद्रूप है, २. पर रूप की अपेक्षा असद्रूप है, ३. उभय रूप की अपेक्षा सद्-असद् रूप होने से अवक्तव्य है, ४-७.सद्भाव-पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा और असद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा (एक वचन और बहुवचन के क्रम से) चार भंग होते हैं, ८.११. सद्भाव पर्याय वाले और तदुभय पर्याय वाले की अपेक्षा (एक वचन-बहुवचन के क्रम से) चार भंग होते हैं। १२-१५. असद्भावपर्याय वाले और तदुभय पर्याय वाले की अपेक्षा (एकवचन-बहुवचन के क्रम से) चार भंग होते हैं। १६.सद्भावपर्याय वाले एक देश की अपेक्षा, असद्भावपर्याय वाले एक देश की अपेक्षा और तदुभय पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा चतुष्प्रदेशी स्कन्ध सद्रूप-असद्रूप और सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है, १७.सद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा, असद्भावपर्याय वाले एक देश की अपेक्षा और तदुभय पर्याय वाले अनेक देशों की अपेक्षा चतुष्प्रदेशी स्कन्ध सद्रूपअसद्रूप है और अनेक सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य हैं, १८. सद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा असद्भाव पर्याय वाले अनेक देशों की अपेक्षा और तदुभयपर्याय वाले एक देश की अपेक्षा चतुष्प्रदेशी स्कन्ध सद्रूप है असदुरूप है और सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है, ८-११ सब्भावपज्जवेणं तदुभएण य, चउभंगो, १२-१५. असब्भावपज्जवेणं तदुभएण य, चउभंगो, १६. देसे आइ8 सब्भावपज्जवे, देसे आइट्टे असब्भावपज्जवे, देसे आइठे तदुभयपज्जवे, चउप्पएसिए खंधे आया य, नो आया य, अवत्तव्वं-आया इयनो आया इय, १७.देसे आइठे सब्भावपज्जवे, देसे आइठे असब्भावपज्जवे, देसा आइट्ठा तदुभयपज्जवा, चउप्पएसिए खंधे, आया य, नो आया य, अवत्तव्वाई-आयाओ य नो आयाओ य, १८. देसे आइ8 सब्भावपज्जवे, देसा आइट्ठा असब्भावपज्जवा, देसे आइ8 तदुभयपज्जवे, चउप्पएसिए खंधे आया य, नो आयाओ य, अवत्तव्वं आया इय नो आया इय,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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