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________________ १८४४ १६-२२.तियगसंजोगे एक्कोण पडइ।(सत्तभंगा) से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पंचपएसिए खंधे १. सिय आया जाव २२. सिय आयाओ य नो आयाओ य अवत्तव्यं आया इ य नो आया इय।" छप्पएसियस्स सव्वे पडंति, छप्पएसिए एवं जाव अणंतपएसिए। -विया. स. १२, उ.१०, सु. २७-३३ ७९. परमाणुपोग्गल-खंधाणं परोप्परं फुसणा परूवणंप. परमाणुपोग्गले णं भंते ! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं १. देसेणं देसं फुसइ, २. देसेणं देसे फुसइ, ३. देसेणं सव्वं फुसइ, ४. देसेहिं देसं फुसइ, ५. देसेहिं देसे फुसइ, ६. देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. सव्वेणं देसं फुसइ, ८. सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ? उ. गोयमा ! १. णो देसेणं देसं फुसइ, २. णो देसेणं देसे फुसइ, ३. णो देसेणं सव्वं फुसइ, ४. णो देसेहिं देसं फुसइ, ५. णो देसेहिं देसे फुसइ, ६. णो देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. णो सव्वेणं देसं फुसइ, ८. णो सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ। एवं परमाणु पोग्गले दुपदेसियं फुसमाणे सत्तमणवमेहिं-फुसइ। द्रव्यानुयोग-(३) । १६-२२. त्रिकसंयोगी आठ भंगों में से अंतिम भंग घटित न होने से सात भंग होते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"पंच प्रदेशी स्कन्ध-१. कथंचित् सद्रूप है यावत् २२. कथंचित् अनेक सद्रूप और अनेक असदुरूप हैं और एक सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है।" षट्प्रदेशी स्कन्ध में सभी २३ भंग होते हैं। (अर्थात् त्रिकसंयोगी आठवाँ भंग भी बनता है।) षट्प्रदेशी स्कन्ध की तरह अनन्त प्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त भंग जानने चाहिए। ७९. परमाणु पुद्गल स्कन्धों का परस्पर स्पर्शना का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु पुद्गल-परमाणुपुद्गल को स्पर्श करता हुआ १. क्या एक देश से एक देश को स्पर्श करता है? २. एक देश से बहुत देशों को स्पर्श करता है ? ३. एक देश से सर्व को स्पर्श करता है? ४. बहुत देशों से एक देश को स्पर्श करता है? ५. बहुत देशों से बहुत देशों को स्पर्श करता है? ६. बहुत देशों से सर्व को स्पर्श करता है? ७. सर्व से एक देश को स्पर्श करता है? ८. सर्व से बहुत देशों को स्पर्श करता है? ९. सर्व से सर्व को स्पर्श करता है? उ. गौतम ! (परमाणु पुद्गल को) १. एक देश से एक देश को स्पर्श नहीं करता, २. एक देश से बहुत देशों को स्पर्श नहीं करता, ३. एक देश से सर्व को स्पर्श नहीं करता, ४. बहुत देशों से एक देश को स्पर्श नहीं करता, ५. बहुत देशों से बहुत देशों को स्पर्श नहीं करता, ६. बहुत देशों से सभी को स्पर्श नहीं करता, ७. सर्व से एक देश को स्पर्श नहीं करता है, ८. सर्व से बहुत देशों को स्पर्श नहीं करता है किन्तु ९. सर्व से सर्व को स्पर्श करता है। इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता हुआ परमाणुपुद्गल सातवें (सर्व से एक देश का) और नौवें (सर्व से सर्व का) इन दो विकल्पों से स्पर्श करता है। त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुआ परमाणुपुद्गल अन्तिम तीन विकल्पों (७-९) से स्पर्श करता है। जिस प्रकार एक परमाणु-पुद्गल द्वारा त्रिप्रदेशीस्कन्ध के स्पर्श करने का आलापक कहा गया है उसी प्रकार अनन्त प्रदेशी स्कन्ध पर्यंत के स्पर्श का आलापक कहना चाहिए। प्र. भंते ! द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणु पुद्गल को स्पर्श करता हुआ क्या१. एक देश से एक देश को स्पर्श करता है यावत् ९. सर्व से सर्व को स्पर्श करता है? परमाणुपोग्गले तिपएसियं फुसमाणे पच्छिमएहिं तिहिं फुसइ। जहा परमाणु पोग्गले तिपएसियं फुसाविओ एवं फुसावेयव्वो-जाव-अणंतपएसिओ। प. दुपएसिए णं भंते ! खंधे परमाणु पोग्गलं फुसमाणे किं १. देसेणं देसं फुसइ जाव ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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