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________________ १८४० उ. गोयमा ! १. अप्पणो आइठे आया, २. परस्स आइठे नो आया, ३. तदुभयस्स आइ8 अवत्तव्यं, दुपएसिए खंधे आया इय,नो आया इय, ४. देसे आइठे सब्भावपज्जवे, देसे आइट्ठे असब्भावपज्जवे, दुप्पएसिए खंधे आया य, नो आया य, देसे आइठे सब्भावपज्जवे, देसे आइठे तदुभयपज्जवे, दुपएसिए खंधे आया य, अवत्तव्यं आया इय,नो आया इय, ६. देसे आइठे असब्भावपज्जवे, देसे आइठे तदुभयपज्जवे, दुपएसिए खंधे नो आया इ य, अवत्तव्यं आया इय,नो आया इय, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"दुपएसिए खंधे १. सिय आया जाव ६. सिय नो आया य,अवत्तव्वं आया इय नो आया इय। प. आया भंते ! तिपएसिए खंधे,अन्ने तिपएसिए खंधे? उ. गोयमा ! तिपएसिए खंधे १. सिय आया, २. सिय नो आया, ३. सिय अवत्तव्यं आया इय,नो आया इय, ४. सिय आया य,नो आया य, ५. सिय आया य,नो आयाओ य, ६. सिय आयाओ य,नो आयाओ य, ७. सिय आया य,अवत्तव्यं आया इय,नो आया इय, द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! (द्विप्रदेशी स्कन्ध) १. अपने स्वरूप की अपेक्षा सद्रूप है, २. पररूप की अपेक्षा असदुरूप है, ३. उभयरूप की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कन्ध सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है। ४. सद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा और असद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा द्विप्रदेशिक स्कन्ध सद्रूप है और असदुरूप है। ५. सद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा और तदुभय पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कन्ध सदुरूप है और सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है। ६. असद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा और तदुभय पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कन्ध असद्रूप है और सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"द्विप्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्रूप है यावत् ६. कथंचित् असद्प होते हुए भी सद्-असद् (उभयरूप) होने से अवक्तव्य है।" प्र. भंते ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध सद्रूप है या असद्प है? उ. गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्रूप है, २. कथंचित् असद्रूप है, ३. कथंचित् सद्-असद् रूप होने से अवक्तव्य है, ४. कथंचित् सद्प और कथंचित् असद्रूप है, ५. कथंचित् एक सद्प है और अनेक असद्प है, ६. कथंचित् अनेक सद्रूप हैं और एक असऐप है, ७. कथंचित् सद्रूप होते हुए भी सद्-असद् (उभयरूप) होने से अवक्तव्य है, ८. कथंचित् एक सद्रूप होते हुए भी अनेक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है, ९. कथंचित् अनेक सद्प होते हुए भी एक सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है, १०. कथंचित् असद्रूप होते हुए भी सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है, ११. कथंचित् एक असद्प होते हुए भी अनेक सद्-असदूप होने से अवक्तव्य है, १२. कथंचित् अनेक असद्रूप होते हुए भी एक सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है, १३. कथंचित् सद्रूप और असद्प है और सद्-असद् रूप होने से अवक्तव्य है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि-त्रिप्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्प है यावत् १३.कथंचित् सद्प असदुप और सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है? ८. सिय आया य, अवत्तव्वाइं आयाओ य, नो आयाओ य, ९. सिय आयाओ य, अवत्तव्वं आया इय, नो आया इय, १०. सिय नो आया य, अवत्तव्यं आया इय, नो आया इय, ११. सिय नो आया य, अवत्तव्याइं आयाओ य, नो आयाओय, १२. सिय नो आयाओ य,अवत्तव्यं आया इय,नो आया इय, १३. सिय आया य,नो आया य,अवत्तव्यं आया इय,नो आया इय, प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ-तिपएसिए खंधे १. सिय आया जाव १३.सिय आया य, नो आया य, अवत्तव्यं आया इय, नो आया इय?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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