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________________ पुद्गल अध्ययन सत्तपएसिए जहा तिपएसिए, अट्ठपएसिए जहा दुपएसिए, नवपएसिए जहा तिपएसिए, दसपएसिए जहा दुपएसिए, प. संखेज्जपएसिए णं भंते ! खंधे किं सड्ढे,अणड्ढे? . उ. गोयमा ! सिय सड्ढे,सिय अणड्ढे, एवं असंखेज्जपएसिए वि, । १८३९) सप्तप्रदेशी स्कन्ध का कथन त्रिप्रदेशी स्कन्ध के समान है। अष्टप्रदेशी स्कन्ध का कथन द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान है। नवप्रदेशी स्कन्ध का कथन त्रिप्रदेशी स्कन्ध के समान है। दसप्रदेशी स्कन्ध का कथन द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान है। प्र. भंते ! संख्यातप्रदेशी स्कन्ध सार्द्ध हैं या अनर्द्ध हैं ? उ. गौतम ! वे कदाचित् सार्द्ध हैं और कदाचित् अनर्द्ध है। इसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध के सम्बन्ध में जानना चाहिए। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध का कथन करना चाहिए। प्र. भंते !(अनेक) परमाणु-पुद्गल सार्द्ध है या अनर्द्ध है? उ. गौतम ! वे सार्द्ध भी हैं और अनर्द्ध भी हैं। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्धों पर्यंत जानना चाहिए। एवं अणंतपएसिए वि। प. परमाणुपोग्गला णं भंते ! किं सड्ढा अणड्ढा ? उ. गोयमा ! सड्ढा वा, अणड्ढा वा, एवं जाव अणंतपएसिया। -विया. स. २५, उ. ४, सु. १७४-१८८ ७८. परमाणुपोग्गलाइसुखंधेसु सिय आयाइ रुव परूवणं प. आया भंते ! परमाणुपोग्गले,अन्ने परमाणु पोग्गले? उ. १..परमाणु पोग्गले सिय आया, २. सिय नो आया, ३. सिय अवत्तव्वं आयाइ य, नो आयाइ य, प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "परमाणु पोग्गले सिय आया, सिय नो आया सिय अवत्तव्यं आयाइय,नो आयाइ य?" उ. गोयमा !१.अप्पणो आइठे आया, २. परस्स आइठे नो आया, ३. तदुभयस्स आइठे अवत्तव्यं आयाइ य, नो ___ आयाइ य, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"परमाणु पोग्गले सिय आया, सिय नो आया सिय अवत्तव्यं आयाइय,नो आयाइ य," प. आया भंते ! दुपएसिए खंधे अन्ने दुपएसिए खंधे? उ. गोयमा ! दुपएसिए खंधे १. सिय आया, २. सिय नो आया, ३. सिंय अवत्तव्यं आया इ य, नो आया इय, ४. सिय आया य, नो आया इय, ५. सिय आया य, अवत्तव्यं आया इय,नो आया इय, ७८. परमाणु पुद्गल और स्कन्धों में कथंचित् आत्मादि रूप का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल आत्मरूप (सद्प) है या अन्य (असद्प ) है? उ. गौतम ! १. परमाणु पुद्गल कथंचित् सद्रूप है, २. कथंचित् असद्प है, ३. कथंचित् सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "परमाणु पुद्गल कथंचित् सद्प है, कथंचित् असद्रूप है और कथंचित् सद्-असद् रूप होने से अवक्तव्य है?" उ. गौतम ! १. अपने स्वरूप की अपेक्षा सद्रूप है, २. पररूप की अपेक्षा असद्रूप है, ३. उभय (स्व-पर) की अपेक्षा सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"परमाणु पुद्गल कथंचित् सद्रूप है, कथंचित् असद्प है और कथंचित् सद्-असद्रूप होने से अवक्तव्य है।" प्र. भंते ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध सद्रूप है या असद्रूप है? उ. गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्प है, २. कथंचित् असद्रूप है, ३. कथंचित् सद्-असद्प होने से अवक्तव्य है, ४. कथंचित् सद्प और कथंचित् असद्रूप है, ५. कथंचित् सद्रूप होते हुए भी सद्-असद् (उभयरूप) होने से अवक्तव्य है। ६. कथंचित् असद्प होते हुए भी सद्-असद् (उभय रूप) होने से अवक्तव्य है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "द्विप्रदेशी स्कन्ध १. कथंचित् सद्प है यावत् ६. कथंचित् असद्रूप होते हुए भी सद्-असद् (उभयरूप) होने से अवक्तव्य है?" ६. सिय नो आया य, अवत्तव्वं आया इय, नो आया इय, प. से केणठेणं भंते ! वुच्चइ. "दुपएसिए खंधे १. सिय आया जाव ६.सिय नो आया य, अवत्तव्वं आया इय,नो आया इ य?"
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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