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________________ पुद्गल अध्ययन पच्चथिमिल्लाओ चरिमंताओ पुरथिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेट्ठिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ उवरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ? उ. हंता, गोयमा ! परमाणु पोग्गले णं लोगस्स पुरिथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चथिमिल्लं चरिमंत एगसमएणं गच्छइ जावहेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ उवरिल्ले चरिमंते एगसमएणं गच्छइ। -विया.स.१६, उ.८,सु.१३ ६४. परमाणुपोग्गलाणं सासयासासयत्तं प. परमाणु पोग्गले णं भंते ! किं सासए, असासए? उ. गोयमा ! सिय सासए, सिय असासए। प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ "परमाणु पोग्गले सिय सासए, सिय असासए?" - १८३१) पश्चिमी चरमान्त से पूर्वी चरमान्त तक क्या एक समय में जाता है? दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त तक क्या एक समय में जाता है? उत्तरी चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त तक क्या एक समय में जाता है? ऊपरी चरमान्त से नीचे के चरमान्त तक क्या एक समय में जाता है, नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त में क्या एक समय में जाता है? उ. हाँ, गौतम ! परमाणु-पुद्गल लोक के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त तक एक समय में जाता है यावत्नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त तक एक समय में जाता है। ६४. परमाणु पुद्गलों का शाश्वतत्व-अशाश्वतत्व प्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल क्या शाश्वत है या अशाश्वत है ? उ. गौतम ! वह कदाचित् शाश्वत है और कदाचित् अशाश्वत है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि परमाणु पुद्गल कदाचित् शाश्वत है और कदाचित् अशाश्वत है? उ. गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है, वर्ण पर्यायों की अपेक्षा यावत् स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"परमाणु पुद्गल कदाचित् शाश्वत है और कदाचित् अशाश्वत है।" ६५. विविध प्रकारों के परमाणु पुद्गल और स्कन्धों के अनन्तत्व का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या परमाणु-पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. गौतम ! वे संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त अनन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. गौतम ! पूर्व के समान (अनन्त) कहना चाहिए। इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशावगाढ़ पुद्गल पर्यन्त (अनन्त) कहना चाहिए। प्र. भंते ! एक समय की स्थिति वाले पुद्गल क्या संख्यात हैं असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. गौतम ! पूर्व के समान (अनन्त) कहना चाहिए। इसी प्रकार असंख्यात समयों की स्थिति वाले पुद्गल पर्यन्त कहना चाहिए। उ. गोयमा !दव्वट्ठयाए सासए, वण्णपज्जवेहिं जाव फासपज्जवेहिं असासए, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"परमाणु पोग्गले सिय सासए, सिय असासए।" -विया.स.१४, उ.४,सु.८ ६५. विविहपगाराणं परमाणुपोग्गलाणं खंधाण य अणंतत्त परूवणंप. परमाणु पोग्गला णं भंते ! किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता? उ. गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। एवं जाव अणंतपएसिया खंधा। प. एगपएसोगाढा णं भंते ! पोग्गला किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढा। प. एगसमयट्ठिईया णं भंते ! पोग्गला किं संखेज्जा, असंखेज्जा,अणंता? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जसमयट्टिईया।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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