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________________ १८३० ६१. वण्णाइ विवक्खया पोग्गलाणं दव्वट्ठयाइ अप्पाबहुयं प. एएसिणं भंते !१.एगगुणकालयाणं, २. संखेज्जगुणकालयाणं, ३. असंखेज्जगुणकालयाणं, ४. अणंतगुणकालयाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !जहा परमाणुपोग्गला तहा भाणियव्या। - द्रव्यानुयोग-(३)) ६१. वर्णादि की अपेक्षा पुद्गलों का द्रव्यादि की विवक्षा से अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन १. एक गुण काले, २. संख्यातगुण काले, ३. असंख्यातगुण काले और ४. अनन्तगुण काले पुद्गलों में द्रव्य की अपेक्षा प्रदेशों की अपेक्षा और द्रव्य प्रदेश की अपेक्षा कौन-किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? पा: एवं सेसा वि वण्ण गंध रसा भाणियव्वा। फासाणं कक्खड- मउय- गरुय- लहुयाणं जहा एगपएसोगाढाणं भणियंतहा भाणियव्वं। अवसेसा फासा जहा वण्णा भणिया तहा भाणियव्वा। -पण्ण.प.३, सु.३३३ ६२. परमाणुणो भेयप्पभेयाएगे परमाणु। -ठाण.अ.१.सु.३६, प. कइविहे णं भंते ! परमाणु पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउबिहे परमाणु पण्णत्ते, तं जहा १. दव्यपरमाणु, २. खेत्तपरमाणु, ३. कालपरमाणु, ४. भावपरमाणु। प. दव्वपरमाणु णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते,तं जहा १. अच्छेज्जे, २. अभेज्जे, ३. अडझे, ४. अगेज्झे। प. खेत्तपरमाणु णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते,तं जहा १. अणड्ढे, २. अमज्झे, ३. अपएसे, ४. अविभाइमे, प. कालपरमाणुणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. अवन्ने, २. अगंधे, ३. अरसे, ४. अफासे। प. भावपरमाणु णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. वण्णमंते, २. गंधमंते, ३. रसमंते, ४. फासमंते। -विया. स. २०, उ.५, सु.१५-१९ ६३. परमाणुपोग्गलस्स एगसमए गई सामत्थ परूवणंप. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चस्थिमिल्लं चरिमंत एगसमएणं गच्छइ, उ. गौतम ! जिस प्रकार पूर्व में परमाणु पुद्गलों के विषय में कहा गया है उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। इसी प्रकार शेष वर्ण गन्ध और रस सम्बन्धी पुद्गलों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। कर्कश, मृदु, गुरु और लघु स्पर्श वाले पुद्गलों का अल्पबहुत्व एक प्रदेशावगाढादि के समान यहाँ भी कहना चाहिए। अवशेष चार स्पों वाले पुद्गलों का अल्पबहुत्व वर्ण के समान कहना चाहिए। ६२. परमाणुओं के भेद-प्रभेद परमाणु एक है। प्र. भंते ! परमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! परमाणु चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. द्रव्यपरमाणु, २. क्षेत्रपरमाणु, ३. कालपरमाणु, ४. भावपरमाणु। प्र. भंते ! द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. अच्छेद्य, २. अभेद्य, ३. अदाह्य, ४. अग्राह्य। प्र. भंते ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. अनर्द्ध, २. अमध्य, ३. अप्रदेश, ४. अविभाज्य। प्र. भंते ! कालपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. अवर्ण, २. अगन्ध, ३. अरस, ४. अस्पर्श। प्र. भंते ! भावपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा- १. वर्णवान्, २. गन्धवान्, ३. रसवान्, ४. स्पर्शवान्। ६३. एक समय में परमाणु पुद्गल की गति सामर्थ्य का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल लोक के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त तक क्या एक समय में जाता है?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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