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________________ १८३२ प. एगगुणकालगा णं भंते ! पोग्गला किं संखेज्जा, असंखेज्जा,अणंता? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव अणंतगुणकालगा। एवं अवसेसा वि वण्ण-गंध-रस-फासा णेयव्वा जाव अणंतगुणलुक्ख त्ति। -विया. स.२५, उ. ४, सु. ८७-९५ ६६. परमाणुपोग्गलाणं साहणणा भेयस्स परिणाम परूवणंप. एएसि णं भंते ! परमाणु पोग्गलाणं साहणणा भेयाणुवाएणं अणंताणता पोग्गलपरियट्टा समणुगंतव्वा भवंतीति मक्खाया? उ. हंता, गोयमा ! एएसि णं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा भेयाणुवाएणं अणंताणता पोग्गलपरियट्टा समणुगंतव्वा भवंतीति मक्खाया। -विया. स. १२, उ.४, सु. १४ ६७. पोग्गलपरियट्टस्स भेया चउवीसदंडएसु य परूवणं प. कइविहे णं भंते ! पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते,तं जहा १. ओरालियपोग्गलपरियट्टे, २. वेउव्वियपोग्गलपरियट्टे, ३. तेयापोग्गलपरियट्टे, ४. कम्मापोग्गलपरियट्टे, ५. मणपोग्गलपरियट्टे, ६. वइपोग्गलपरियट्टे, ७. आणपाणुपोग्गलपरिय?।। प. दं.१.नेरइयाणं भंते ! कइविहे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते? द्रव्यानुयोग-(३) प्र. भंते ! एक गुण काले पुद्गल क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं? उ. गौतम ! पूर्व के समान (अनन्त) कहना चाहिए। इसी प्रकार अनन्त गुण काले पुद्गल पर्यन्त समझना चाहिए। शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के सम्बन्ध में अनन्त गुण रुक्ष स्पर्श पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। ६६. परमाणु पुद्गलों के संघात भेद के परिणाम का प्ररूपणप्र. भंते ! इन परमाणु-पुद्गलों के संघात (संयोग) और भेद (वियोग) के सम्बन्ध से होने वाले अनन्तानन्त पुद्गल परिवर्त क्या जानने योग्य हैं और इसीलिए आपने इनका कथन किया है? उ. हाँ, गौतम ! इन परमाणु पुद्गलों के संघात और भेद के सम्बन्ध से होने वाले अनन्तानन्त पुद्गल परिवर्त जानने योग्य हैं, इसीलिए ये कहे गये हैं। ६७. पुद्गल परिवर्त के भेद और चौवीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भंते ! पुद्गल परिवर्त कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह सात प्रकार का कहा गया है, यथा १. औदारिक पुद्गल परिवर्त, २. वैक्रिय-पुद्गल परिवर्त, ३. तैजस्-पुद्गल परिवर्त, ४. कार्मण-पुद्गल परिवर्त, ५. मनःपुद्गल परिवर्त, ६. वचन-पुद्गल परिवर्त, ७. आनप्राण-पुद्गल परिवर्त। प्र. दं.१.भंते ! नैरयिकों के पुद्गल-परिवर्त कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गौतम ! सात प्रकार के पुद्गल-परिवर्त कहे गये हैं, यथा १. औदारिक पुद्गल-परिवर्त यावत्७. आन-प्राण पुद्गल-परिवर्त। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त पुद्गल परिवर्त कहना चाहिए। ६८. जीव-चौवीस दण्डकों में पुद्गल परिवर्तों का प्ररूपणप्र. भंते ! एक-एक (प्रत्येक) जीव के अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं ? उ. गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! प्रत्येक जीव के भविष्यकाल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त होंगे? उ. गौतम !(भविष्यकाल में) किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्य एक दो या तीन होंगे तथा उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे। इसी प्रकार आन-प्राण पुद्गल-परिवर्त पर्यन्त सात आलापक कहने चाहिए। उ. गोयमा ! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते,तं जहा १. ओरालियपोग्गलपरियट्टे जाव७. आणपाणुपोग्गलपरियट्टे। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणियाणं। -विया. स. १२, उ.४, सु. १५-१७ ६८. जीव-चउवीसदंडएसु पोग्गलपरियट्टाणं परूवणंप. एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवइया ओरालियपोग्गल परियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! अणंता, प. एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवइया ओरालियपोग्गल परियट्टा पुरेक्खडा? उ. गोयमा !कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि! जस्सऽस्थि जहण्णेणं एगो वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। एवं सत्त दंडगा जाव आणपाणु त्ति।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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