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________________ १८२८ कक्खडे वरे, मउए नवणीए, गरुए अए, लहुए उलुयपत्ते, सीए हिमे, उसिणे अगणिकाए णि तेल्ले प. छारिया णं भंते ! कइवण्णे, कइगन्धे, कइरसे, कइफासे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा - १. नेच्छयनए य २. वावहारियनए य १. वावहारियनयस्स - लुक्खा छारिया, २. नेच्छइयनयस्स पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पण्णत्ता । - विया. सं. १८, उ. ६, सु. १-५ ५७. वण्ण-गंध-रस-फासनिव्वत्तिभेया चउवीसदंडएसु य परूवणं ब. कइविहा णं भंते! यण्णनिव्यती पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! पंचविहा वण्णनिव्यत्ती पण्णत्ता, तं जहा१. कालवण्णनिव्यत्ती जाय ५. सुक्कियण्णनिव्यत्ती । एवं निरवसेसं जाव वैमाणियाणं । एवं गंधनिव्यती दुविहा जाव बेमाणियाणं । रसनिव्वत्ती पंचविहा जाव वेमाणियाणं । फासनिव्यत्ती अट्ठविहा जाव वेमाणियाणं । - विया. स. १९, उ. ८, सु. २१-२५ १८. खेलविसाणुवाएणं पोग्गलाणं अप्पाबहुवंखेत्ताणुवाएणं १. सव्वत्थोवा पोग्गला तेलोक्के, २. उड्ढलोयतिरियलोए अनंतगुणा, ३. अहेलोएतिरियलोए विसेसाहिया, ४. तिरियलोए असंखेज्जगुणा, ५. उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, ६. अहेलोए विसेसाहिया । दिसाणुवाएणं १. सव्वत्थोवा पोग्गला उड्ढदिसाए, २. अहेदिसाए विसेसाहिया, - ३. उत्तरपुरत्थिमेण दाहिण्णपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्ला असंखेज्जगुणा, ४. दाहिणपुरत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्ला विसेसाहिया, ५. पुरत्थिमेणं असंखेज्जगुणा, ६. पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, वज्र कर्कश है। मक्खन कोमल है। लोहा भारी है। द्रव्यानुयोग - (३) लघु-उलूकपत्र (उल्लू की पांख) हल्की है। हिम (बर्फ) शीत है। अग्नि ऊष्ण है, तैल स्निग्ध है इत्यादि इन के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! राख कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाली कही गई है? उ. गौतम ! यहां दो नय कहे गए हैं, १. निश्चयनय, २. व्यवहारनय, १. व्यवहार नय की अपेक्षा राख रुक्षस्पर्श वाली है। २. निश्चयनय की अपेक्षा पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाली कही गई है। यथा ५७. वर्ण-गंध-रस और स्पर्श निर्वृत्ति के भेद तथा चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भंते! वर्णनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वर्णनिर्वृत्ति पांच प्रकार की कही गई है, यथा १. कृष्णवर्णनिर्वृत्ति यावत् ५. शुक्लवर्णनिर्वृत्ति । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त समग्र वर्णनिर्वृति कहनी चाहिए। इसी प्रकार दो प्रकार की गन्धनिर्वृति वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए। पांच प्रकार की रस निर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए। आठ प्रकार की स्पर्श निर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए। ५८. क्षेत्र दिशानुसार पुद्गलों का अल्पबहुत्व क्षेत्र के अनुसार १. सबसे कम पुद्गल त्रिलोक में हैं, २. (उससे) ऊर्ध्वलोक तिर्यग्लोक में अनन्तगुणे हैं, ३. (उससे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, ४. ( उससे ) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, ५. (उससे ) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, ६. (उससे अधोलोक में विशेषाधिक है। दिशाओं के अनुसार १. सबसे कम पुद्गल ऊर्ध्वदिशा में हैं, २. ( उससे अधोदिशा में विशेषाधिक है, ३. ( उससे) उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दोनों में तुल्य है और असंख्यातगुणे हैं। ४. ( उससे) दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम दोनों में तुल्य हैं और विशेषाधिक हैं, ५. ( उससे पूर्व दिशा में असंख्यातगुणे हैं, ६. ( उससे) पश्चिम दिशा में विशेषाधिक हैं,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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