SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल अध्ययन १८२७ प. से नूणं भंते ! सुरूवा पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति? उ. हंता, गोयमा ! सुरूवा पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताएपरिणमंति। एवं सुब्भिगंधा पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति दुब्भिगंधा पोग्गला सुब्भिगंधत्ताएपरिणमंति। एवं सुरसा पोग्गला दुरसत्ताए, दुरसा पोग्गला सुरसत्ताए परिणमंति। एवं सुफासा पोग्गला दुफासत्ताए, दुफासा पोग्गला सुफासत्ताए परिणमंति। -जीवा. पडि. ३, सु. १८९ ५६. फाणियगुलाई दिट्ठतेहिं रूवीदव्येसु ववहार-निच्छयनयेण वण्णाइ परूवणंप. फाणियगुले णं भंते ! कइवण्णे, कइगंधे, कइरसे, कइफासे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! एत्थ णं दो नया भवंति,तं जहा १. नेच्छइयनए य, २. वावहारियनए य। १. वावहारियनयस्स-गोड्डे फाणियगुले, २. नेच्छइयनयस्स-पंचवन्ने, दुगंधे, पंचरसे, अट्ठफासे पण्णत्ते। प. भमरे णं भंते ! कइवण्णे, कइगंधे, कइरसे, कइफासे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा १. नेच्छइयनए य, २. वावहारियनए य। १. वावहारियनयस्स-कालए भमरे, २. नेच्छइयनयस्स-पंचवन्ने जाव अट्ठफासे पण्णत्ते। प्र. भंते ! शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप के पुद्गल शुभ रूप में बदलते हैं क्या? । उ. हाँ, गौतम ! शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप के पुद्गल शुभ रूप में बदलते हैं। इसी प्रकार सुरभिगन्ध के पुद्गल दुरभिगन्ध के रूप में और दुरभिगन्ध के पुद्गल सुरभिगन्ध के रूप में बदलते हैं। इसी प्रकार शुभरस के पुद्गल अशुभरस के रूप में और अशुभरस के पुद्गल शुभरस के रूप में बदलते हैं। इसी प्रकार शुभस्पर्श के पुद्गल अशुभस्पर्श के रूप में और अशुभस्पर्श के पुद्गल शुभस्पर्श के रूप में बदलते हैं। ५६. फाणित गुड़ आदि दृष्टान्तों द्वारा रूपी द्रव्यों में व्यवहार नय और निश्चयनय से वर्णादि का प्ररूपणप्र. भंते ! फाणित (प्रवाही) गुड़ कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! यहाँ दो नय कहे गए हैं, यथा १. निश्चय नय, २. व्यवहार नय। १. व्यवहार नय की अपेक्षा फाणित गुड़ मधुर रस वाला है, २. निश्चयनय की अपेक्षा पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श वाला कहा गया है। प्र. भंते ! भ्रमर कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! यहां दो नय कहे गए हैं, यथा १. निश्चयनय, २. व्यवहार नय। १. व्यवहारनय की अपेक्षा भ्रमर कृष्ण वर्ण वाला है। २. निश्चय नय की अपेक्षा भ्रमर पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाला कहा गया है। प्र. भंते ! शुक की पांख कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाली कही गई है? उ. गौतम ! यहां दो नय कहे गए हैं, यथा १. निश्चय नय, २. व्यवहार नय। १. व्यवहार नय की अपेक्षा शुक की पांख नीली है। २. निश्चयनय की अपेक्षा पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाली __ कही गई है। इसी प्रकार के अभिलाप से मजीठ लाल है। हल्दी पीली है। शंख शुक्ल है। कुष्ठ-पटवास सुगंधित है, मृत कलेवर दुर्गन्धयुक्त है। नीम कडुवा है। सूंठ तीक्ष्ण है। कच्चा कपित्थ कसैला है। कच्चा आम-अम्ल खट्टा है। खांड मधुर है, प. सुयपिच्छे णं भंते ! कइवण्णे, कइगन्धे, कइरसे, कइफासे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा १. नेच्छइयनए य, २. वावहारिय नए य, १. वावहारियनयस्स-नीलए सुयपिच्छे, २. नेच्छइवनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पण्णत्ते। हा एवं एएणं अभिलावेणं लोहिया मंजिट्ठी, पीतिया हलिद्दा, सुक्किल्लए संखे, सुब्भिगंधे कोठे, दुब्भिगंधे मयगसरीरे, तित्ते निंबे, कडुया सुंठी, कसायतुरए कविठे, अंबा अंबिलिया, महुरे खंडे,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy