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________________ १८२६ जहा अत्ता भणिया तहा इट्ठा विभाणियव्या। एवं कंता वि, पिया वि, मणुन्ना वि, मणामा वि भाणियव्वा। एएपंच दंडगा। -विया. स. १४, उ. ९, सु.४-११ ५५. इंदियविसयरूव पोग्गलाणं परोप्परं परिणमन परूवणं प. कइविहे णं भंते ! इंदियविसए पोग्गल परिणामे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे इंदियविसए पोग्गल परिणामे पण्णत्ते, तं जहा १. सोइंदियविसए जाव ५.फासिंदियविसए। प. सोइंदियसिएणं भंते ! पोग्गल परिणामे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सुब्भिसद्दपरिणामे य, २. दुब्भिसद्दपरिणामे य। प. चक्विंदियविसए णं भंते ! पोग्गल परिणामे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सुरूवपरिणामे य, २. दुरूवपरिणामे य। प. घाणिदियविसए णं भंते ! पोग्गल परिणामे कइविहे पण्णत्ते,? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सुब्भिगंध परिणामे य, २. दुब्भिगंध परिणामे य। प. रसिंदियविसए णं भंते ! पोग्गल परिणामे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. सुरस परिणामे य, २. दुरस परिणामे य। प. फासिंदियविसए णं भंते ! पोग्गल परिणामे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सुफास परिणामे य, २. दुफास परिणामे य। प. से नूणं भंते ! उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु, उच्चावएसु रूवपरिणामेसु एवं गंधपरिणामेसु, रसपरिणामेसु, फासपरिणामेसु परिणममाणापोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया? उ. हता, गोयमा ! उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया। द्रव्यानुयोग-(३) जिस प्रकार आत्त पुद्गलों के लिए कहा उसी प्रकार इष्ट पुद्गलों के लिए भी कहना चाहिए। इसी प्रकार कान्त, प्रिय मनोज्ञ तथा मनाम पुद्गलों के विषय में भी आलापक कहने चाहिए। ये पांच दण्डक हैं। ५५. इन्द्रिय विषय रूप पुद्गलों का परस्पर परिणमन का प्ररूपणप्र. भंते ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. श्रोत्रेन्द्रिय विषय यावत् ५. स्पर्शेन्द्रिय विषय। प्र. भंते ! श्रोत्रेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. शुभ शब्द परिणाम, २. अशुभ शब्द परिणाम। प्र. भंते ! चक्षुइन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सुरूप परिणाम, २. दुरूप परिणाम। प्र. भंते ! वाणिन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सुरभिगंध परिणाम, २. दुरभिगंध परिणाम। प्र. भंते ! रसेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सुरस परिणाम, २. दुरस परिणाम, प्र. भंते ! स्पर्शेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सुस्पर्श परिणाम, २. दुःस्पर्श परिणाम। प्र. भंते ! उत्तम अधम शब्द परिणामों में, उत्तम-अधम रूपपरिणामों में इसी प्रकार गंधपरिणामों में, रसपरिणामों में और स्पर्शपरिणामों में परिणत होते हुए पुद्गल परिणमित होते (बदलते) हैं-ऐसा कहा जा सकता है क्या? उ. हाँ, गौतम ! उत्तम-अधम रूप में बदलने वाले शब्दादि परिणामों में परिणमित पुद्गलों का बदलना कहा जा सकता है। प्र. भंते ! शुभ शब्द पुद्गल अशुभ शब्द के रूप में और अशुभ शब्द पुद्गल शुभ शब्द के रूप में में बदलते हैं क्या? प. से नूणं भंते ! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुब्भिसवा पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति? उ. हंता, गोयमा ! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति। उ. हाँ, गौतम ! शुभ शब्द पुद्गल अशुभ शब्द के रूप में और अशुभ शब्द पुद्गल शुभ शब्द के रूप में बदलते हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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