SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२२ दुप्पएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, दुपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, दुसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, दुगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव दुगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं. अ.२, उ.४,सु. १२६, तिपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, तिपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, तिसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, तिगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव तिगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं अ.३, उ.८,सु. २३४ चउप्पएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, चउप्पएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, चउसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, चउगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव चउगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं. ४, उ.४,सु.३८८ पंचपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, पंचपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, पंचसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, पंचगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव पंच गुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं अ.५, उ.३,सु.४७४ छप्पएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, छप्पएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, छसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, छगुणकालगा पोग्गला जाव छगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं.अ.६,सु.५४० सत्तपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, सत्तपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, सत्तसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, सत्तगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव सत्तगुणलुक्खा अणंता पण्णत्ता। -ठाणं. अ.७,सु.५९३ अट्ठपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, अट्ठपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, अट्ठसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, अट्ठगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव अट्ठगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं.अ.८,सु.६६० णवपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, णवपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, णवसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, णवगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव णवगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं.अ.९,सु.७०३ दसपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, दसपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, द्रव्यानुयोग-(३) द्वि-प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं। द्वि-प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। दो समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। दो गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् दो गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। त्रिप्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं। त्रिप्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। तीन समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। तीन गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् तीन गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। चतुःप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं, चतुः प्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। चार समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। चार गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् चार गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। पंच-प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं। पंच-प्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। पांच समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। पांच गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् पांच गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। छःप्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं, छःप्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं, छः समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं, छःगुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् छःगुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। सप्तप्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं, सप्तप्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं, सात समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं, सात गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् सात गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। अष्टप्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं। अष्टप्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। आठ समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। आठ गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् आठ गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। नवप्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं। नवप्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। नौ समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। नौ गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् नौ गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। दस प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गए हैं। दस प्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy