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________________ पुद्गल अध्ययन १८२१ दुयासंजोएणं तियासंजोएणं जाव दससंजोएणं बारससंजोएणं उवउंजिऊण जत्थ जत्तिया संजोगा उद्रुति ते सव्ये भाणियव्या। एए पुण जहा नवमसए पवेसणए भणिया तहा उवउंजिऊण भाणियव्वा जाव असंखेज्जा, अणंता एवं चेव, णवरं-एगं पयं अब्भहियं जावअहवा अणंता परिमंडल संठाणपरिणया जाव अणंता आययसंठाणपरिणया। -विया. स. ८, उ. १, सु. ८९-९० ४९. पयोगपरिणयाइपोग्गलाणं अप्पाबहुयंप. एएसि णं भंते ! पोग्गलाणं पओगपरिणयाणं मीसापरिणयाणं वीससापरिणयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा पोग्गला पओगपरिणया, २. मीसापरिणया अणंतगुणा, ३. वीससापरिणया अणंतगुणा।-विया. स. ८, उ.१,सु. ९१ ५०. अच्छिन्न पोग्गलाणंचलण परूवणं तिहिं ठाणेहिं अच्छिन्ने पोग्गले चलेज्जा,तं जहा द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी यावत् दस संयोगी, बारह संयोगी से जहाँ जितने संयोग होते हैं वहाँ उतने भंग उपयोगपूर्वक सब कहने चाहिए। ये सभी संयोगी नवम शतक के प्रवेशनक में जिस प्रकार कहे गये हैं उसी प्रकार यहाँ उपयोगपूर्वक असंख्यात पर्यन्त कहना चाहिए। अनन्तद्रव्यों के परिणाम भी इसी प्रकार हैं। विशेष-एक पद अधिक कहना चाहिए यावत्अथवा अनन्त द्रव्य परिमण्डल संस्थान रूप में परिणत होते हैं यावत् अनन्त द्रव्य आयत संस्थान रूप में परिणत होते हैं। ४९. प्रयोग परिणतादि पुद्गलों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! प्रयोग परिणत, मिश्र परिणत और विश्रसा परिणत इन पुद्गलों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? १. आहारिज्जमाणे वा पोग्गले चलेज्जा, २. विउव्वमाणे वा पोग्गले चलेज्जा, ३. ठाणाओ ठाणं संकामेज्जमाणे वा पोग्गले चलेज्जा। -ठाणं, अ.३,उ.१.सु.१४६ दसहिं ठाणेहिं अच्छिन्ने पोग्गले चलेज्जा,तं जहा१. आहारिज्जमाणे वा चलेज्जा, २. परिणामेज्जमाणे वा चलेज्जा, ३. उस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा, ४. निस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा, ५. वेदेज्जमाणे वा चलेज्जा, ६. णिज्जरिज्जमाणे वा चलेज्जा, ७. विउव्विज्जमाणे वा चलेज्जा, उ. गौतम ! १. सबसे अल्प पुद्गल प्रयोग परिणत हैं, २. (उनसे) मिश्र परिणत अनन्तगुणे हैं, ३. (उनसे) विश्रसा परिणत अनन्तगुणे हैं। ५०. अच्छिन्न पुद्गलों के चलन का प्ररूपण अच्छिन्न (स्कन्ध) पुद्गल (संलग्न) तीन कारणों से चलित होता है, यथा१. जीवों द्वारा आकृष्ट किये जाने पर पुद्गल चलित होता है, २. विकुर्वणा किये जाने पर पुद्गल चलित होता है, ३. एक स्थान से दूसरे स्थान पर संक्रमित किए जाने पर पुद्गल चलित होता है। दस स्थानों से अच्छिन्न पुद्गल चलित होता है, यथा१. आहार के रूप में लिया जा रहा पुद्गल चलित होता है। २. आहार के रूप में परिणत किया जा रहा पुद्गल चलित होता है। ३. उच्छ्वास के रूप में लिया जा रहा पुद्गल चलित होता है। ४. निश्वास के रूप में छोड़ा जा रहा पुद्गल चलित होता है। ५. वेदन किया जा रहा पुद्गल चलित होता है। ६. निर्जरित किया जा रहा पुद्गल चलित होता है। ७. वैक्रिय शरीर के रूप में परिणत किया जा रहा पुद्गल चलित होता है। ८. परिचारणा (संभोग) करते समय पुद्गल चलित होता है। ९. शरीर में यक्ष के प्रविष्ट होने पर पुद्गल चलित होता है। १०. वायु प्रेरित पुद्गल चलित होता है। ५१. विविध प्रकार के पुद्गलों और स्कन्धों के अनंतत्व का प्ररूपणएक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। एक समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। एक गुण कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं यावत् एक गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। ८. परियारिज्जमाणे वा चलेज्जा, ९. जक्खाइट्ठे वा चलेज्जा, १०. वायपरिग्गहे वा चलेज्जा, -ठाणं अ.१०, सु.७०७ ५१. विविहपगाराणं पोग्गलाणं खंधाण य अणंतत्त परूवणं एगपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता, एवमेगसमयठिईया पोग्गला अणंता पण्णत्ता, एगगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव एगगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। -ठाणं अ.१, सु. ४८, १. गांगेय अणगार के प्रश्नोत्तर (स.९, उ.३२) में देखें। (वक्कंति अध्ययन)
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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