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________________ पुद्गल अध्ययन अहवा एगे आरंभसच्चमणप्पओगपरिणए, एगे अणारंभसच्चमणप्पओगपरिणए।। एवं एएणं गमएणं दुयसंजोएणं नेयव्वं, सव्वे संजोगा जत्थ जत्तिया उद्वेति ते भाणियव्वा जाव सव्वट्ठसिद्धगत्ति। जहा पओग परिणया तहा मीसापरिणया विभाणियव्या। एवं वीससापरिणया वि जाव अहवा एगे चउरंससंठाणपरिणए एगे आययसंठाणपरिणए वा। -विया. स.८, उ. १, सु. ८०-८५ ४७. तिण्हं दव्वाणं पयोगपरिणयाइ परूवणंप. तिन्नि भंते ! दव्वा किं पओगपरिणया, मीसापरिणया, वीससापरिणया? उ. गोयमा ! पओगपरिणया वा, मीसापरिणया वा, वीससापरिणया वा। १. अहवा एगे पओगपरिणए दो मीसापरिणया, २. अहवा एगे पओगपरिणए दो वीससापरिणया. ३. अहवा दो पओगपरिणया एगे मीसापरिणए, १८१९ ) अथवा एक द्रव्य आरम्भसत्यमनःप्रयोग परिणत होता है और एक द्रव्य अनारम्भ सत्यमनःप्रयोग परिणत होता है। इसी प्रकार इस आलापक से द्विसंयोगी भंग कहने चाहिए। जहाँ जितने द्विकसंयोगी होते हैं वहाँ वे सब द्विकसंयोगी भंग यावत् सर्वार्थसिद्ध वैमानिक देव पर्यन्त कहना चाहिए। जैसे प्रयोग परिणत के सम्बन्ध में कहा उसी प्रकार मिश्रपरिणत के सम्बन्ध में कहना चाहिए। इसी प्रकार विश्रसा परिणत के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए यावत्अथवा एक द्रव्य चतुरस्रसंस्थानपरिणत भी होता है और एक आयतसंस्थान परिणत भी होता है। ४७. तीन द्रव्यों के प्रयोग परिणतादि का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या तीन द्रव्य प्रयोग परिणत होते हैं, मिश्र परिणत होते हैं या विश्रसा परिणत होते हैं ? उ. गौतम ! वे तीन द्रव्य प्रयोग परिणत भी होते हैं, मिश्रपरिणत भी होते हैं और विश्रसापरिणत भी होते हैं। १. अथवा एक द्रव्य प्रयोग परिणत होता है और दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं। २. अथवा एक द्रव्य प्रयोग परिणत होता है और दो द्रव्य विश्रसा परिणत होते हैं। ३. अथवा दो द्रव्य प्रयोग परिणत होते हैं और एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है। ४. अथवा दो द्रव्य प्रयोग परिणत होते हैं और एक द्रव्य विश्रसा परिणत होता है। अथवा एक द्रव्य मिश्र परिणत होता है और दो द्रव्य विश्रसा परिणत होते हैं। ६. अथवा दो द्रव्य मिश्र परिणत होते हैं और एक द्रव्य विश्रसा परिणत होता है। ७. अथवा एक द्रव्य प्रयोग परिणत होता है, एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और एक द्रव्य विश्रसा परिणत होता है। प्र. भंते ! यदि वे तीन द्रव्य प्रयोग परिणत होते हैं तो क्या वे मनःप्रयोग परिणत होते हैं, वचन प्रयोग परिणत होते हैं या काय प्रयोग परिणत होते हैं? उ. गौतम ! वे (तीन द्रव्य) मनःप्रयोग परिणत भी होते हैं आदि इस प्रकार एक संयोगी, द्विकसंयोगी और त्रिकसंयोगी भंग कहने चाहिए। प्र. यदि वे तीन द्रव्य मनःप्रयोग परिणत होते हैं तो क्या १. वे सत्यमनःप्रयोग परिणत होते हैं, २. असत्यमनःप्रयोग परिणत होते हैं, ३. सत्यामृषामनःप्रयोग परिणत होते हैं, ४. असत्यामृषामनःप्रयोग परिणत होते हैं? उ. गौतम ! वे तीन द्रव्य सत्यमनःप्रयोग परिणत भी होते हैं यावत् असत्यामृषामनःप्रयोग परिणत भी होते हैं। ४. अहवा दो पओगपरिणया एगे वीससापरिणए, ५. अहवा एगे मीसापरिणए दो वीससापरिणया, ६. अहवा दो मीसापरिणया एगे वीससापरिणए, ७. अहवा एगे पओगपरिणए एगे मीसापरिणए एगे वीससापरिणए। प. भंते ! जइ पओगपरिणया किं मणप्पओगपरिणया, वइप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया? उ. गोयमा ! मणप्पओगपरिणया वा, एवं एक्कगसंजोगो, यासंजोगो, तियासंजोगो भाणियव्यो। प. भंते ! जइ मणप्पओगपरिणया किं १. सच्चमणप्पओगपरिणया, २. असच्चमणप्पओगपरिणया, ३. सच्चामोसमणप्पओगपरिणया, ४. असच्चामोसमणप्पओगपरिणया? उ. गोयमा ! सच्चमणप्पओगपरिणया वा जाव असच्चामोसमणप्पओगपरिणया वा,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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