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________________ १७८४ २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं चउप्पएसिए चउप्पएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। प. ३. चउरसे णं भंते ! संठाणे कइपएसिए कइपएसोगाढे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउरंसे संठाणे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. घण चउरंसे य, २. पयर चउरंसे य। १. तत्थ णं जे से पयर चउरसे से दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिए य। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं नवपएसिए नवपएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं चउपएसिए चउपएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। ३. तत्थ णंजे से घणचउरंसे से दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिएय। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं सत्तावीसइपएसिए सत्तावीसइपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। द्रव्यानुयोग-(३) २. उनमें से जो युग्मप्रदेशिक प्रतरवृत्त है, वह जघन्य चार प्रदेश वाला है और चार आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है उत्कृष्ट अनन्तप्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है। प्र. ३. भंते ! चतुरनसंस्थान कितने प्रदेश वाला है और कितने __आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है? उ. गौतम ! चतुरस्रसंस्थान दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. घन-चतुरन, २. प्रतर-चतुरन। १. उनमें से जो प्रतर-चतुरम्न है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज-प्रदेशिक, २. युग्म-प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओज-प्रदेशिक है वह जघन्य नौ प्रदेश वाला है और नौ आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। २. उनमें से जो युग्म-प्रदेशिक है वह जघन्य चार प्रदेश वाला है और चार आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला है और असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। ३. उनमें से जो घन-चतुरम्न है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज-प्रदेशिक, २. युग्म-प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओज-प्रदेशिक है वह जघन्य सत्ताईस प्रदेशों वाला है और सत्ताईस आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। २. उनमें से जो युग्म प्रदेशिक है वह जघन्य आठ प्रदेशों वाला है और आठ आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। प्र. ४. भंते ! आयतसंस्थान कितने प्रदेश वाला है और कितने ___आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है? उ. गौतम ! आयतसंस्थान तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. श्रेणी-आयत, २. प्रतर-आयत, ३. घन-आयत। १. उनमें से जो श्रेणी आयत है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज-प्रदेशिक, २. युग्म-प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओज-प्रदेशिक है वह जघन्य तीन प्रदेश वाला है और तीन आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। २.. उनमें से जो युग्म-प्रदेशिक है, वह जघन्य दो प्रदेश वाला है और दो आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्तप्रदेश वाला है और असंख्यात-प्रदेशावगाढ़ होता है। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं अट्ठपएसिए अट्ठपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए,असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। प. ४. आयते णं भंते ! संठाणे कइपएसिए कइपएसोगाढे पण्णते? उ. गोयमा ! आयते णं संठाणे तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सेढिआयते, २. पयरायते, ३. घणायते। १. तत्थ णंजे से सेढिआयते से दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. ओयपएसिएय, २. जुम्मपएसिएय। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं तिपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए,असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं दुपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए,असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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