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________________ १७८३ पुद्गल अध्ययन ३४. पंचसुसंठाणेसुपएसुपएसोगाढत्त य परूवणंप. १. वट्टे णं भंते ! संठाणे कइपएसिए, कइपएसोगाढे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! वट्टे संठाणे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. घणवट्टे य, २. पयरवट्टे य। तत्थ णं जे से पयरवट्टे से दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिए य। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं पंचपएसिए पंचपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं बारसपएसिए बारसपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। तत्थ णं जे से घणवट्टे से दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिएय। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं सत्तपएसिए सत्तपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं बत्तीसपएसिए, बत्तीसपएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। ३४. पांच संस्थानों के प्रदेशों का और प्रदेशावगाढत्व का प्ररूपणप्र. १.भंते ! वृत्तसंस्थान कितने प्रदेश वाला और कितने आकाश प्रदेशों में अवगाढ कहा गया है? उ. गौतम ! वृत्तसंस्थान दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. घनवृत्त, २. प्रतरवृत्त। उनमें से जो प्रतरवृत्त है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज (विषम) प्रदेशिक, २. युग्म (सम) प्रदेशिका १. उनमें जो ओज-प्रदेशिक प्रतरवृत्त है वह जघन्य पांच-प्रदेश वाला है और पांच आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला होता है और असंख्यात आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है। २. उनमें से जो युग्मप्रदेशिक घनत्रिकोण है वह जघन्य बारह प्रदेशों वाला है और बारह आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उनमें से जो घनवृत्तसंस्थान है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज-प्रदेशिक, २. युग्म-प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओज-प्रदेशिक है वह जघन्य सात प्रदेश वाला है और सात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है। २. उनमें से जो युग्मप्रदेशिक प्रतरवृत्त है, वह जघन्य बत्तीस प्रदेश वाला है और बत्तीस आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है उत्कृष्ट अनन्तप्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है। प्र. २. भंते ! त्रिकोण संस्थान कितने प्रदेश वाला है और कितने आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है? उ. गौतम ! त्रिकोण संस्थान दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. घन त्रिकोण, २. प्रतर त्रिकोण। उनमें से जो प्रतरत्रिकोण है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज-प्रदेशिक, २. युग्म-प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओज प्रदेशिक है वह जघन्य तीन प्रदेश वाला है और तीन आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशों वाला है और असंख्यात आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है। २..उनमें से जो युग्म प्रदेशिक प्रतर त्रिकोण है वह जघन्य छह प्रदेश वाला है और छह आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है। २. उनमें से जो घनत्रिकोण है, वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज-प्रदेशिक, २. युग्म-प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओज प्रदेशिक घनत्रिकोण है वह जघन्य पैंतीस प्रदेशों वाला है और पैंतीस आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है। प. २. तंसे णं भंते ! संठाणे कइपएसिए कइपएसोगाढे पण्णते? उ. गोयमा ! तसे णं संठाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. घणतंसे य, २. पयरतंसे य। १. तत्थ णं जे से पयरतंसे से दुविहे पन्नत्ते,तं जहा १. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिए य। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं तिपएसिए तिपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं छप्पएसिए, छप्पएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से घणतंसे से दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिए य। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं पणतीसपएसिए पणतीसपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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