SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८५ पुद्गल अध्ययन तत्थ णं जे से पयरायते से दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिए य। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं पन्नरसपएसिए, पन्नरसपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंत पएसिए, असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं छप्पएसिए छप्पएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंत पएसिए,असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। ३. तत्थ णं जे से घणायते से दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. ओयपएसिए य, २. जुम्मपएसिए य। १. तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं पणयालीसपएसिए, पणयालीसपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए,असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं बारसपएसिए, बारसपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। प. ५. परिमंडले णं भंते ! संठाणे कइपएसिए कइपएसोगाढे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे विहे पण्णत्ते,तं जहा १. घणपरिमंडले य, २. पयरपरिमंडले य। १. तत्थ णं जे से पयरपरिमंडले से जहन्नेणं वीसइपएसिए, वीसइपएसोगाढे पण्णत्ते। उक्कोसेणं अणंतपएसिए,असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। उनमें से जो प्रतरआयत है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओज-प्रदेशिक, २. युग्म-प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओजप्रदेशिक है वह जघन्य पन्द्रह प्रदेशों वाला है और पन्द्रह आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। २. उनमें से जो युग्म-प्रदेशिक है वह जघन्य छह प्रदेश वाला है और छह आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। ३. उनमें से जो घनआयत है वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. ओजप्रदेशिक, २. युग्म प्रदेशिक। १. उनमें से जो ओजप्रदेशिक है वह जघन्य पैंतालीस प्रदेशों वाला है और पैंतालीस आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। २. उनमें से जो युग्म-प्रदेशिक है वह जघन्य बारह प्रदेशों वाला है और बारह आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। प्र. ५. भंते ! परिमण्डल-संस्थान कितने प्रदेश वाला है और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है? उ. गौतम ! परिमण्डल-संस्थान दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. घन-परिमण्डल, २. प्रतर-परिमण्डल। १. उनमें से जो प्रतर-परिमण्डल है वह जघन्य बीस प्रदेश वाला है और बीस आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। २. उनमें से जो घन-परिमण्डल है वह जघन्य चालीस प्रदेशों वाला है और चालीस आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उत्कृष्ट अनन्त प्रदेश वाला है और असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। ३५. पांच संस्थानों का एकत्व बहुत्व से द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा कृतयुग्मादि का प्ररूपणप्र. भंते ! परिमण्डल-संस्थान क्या द्रव्य की अपेक्षा कृतयुग्म है, योज है, द्वापरयुग्म है या कल्योज है? उ. गौतम ! वह कृतयुग्म त्र्योज और द्वापरयुग्म नहीं है किन्तु कल्योज है। प्र. भंते ! वृत्त-संस्थान क्या द्रव्य की अपेक्षा कृतयुग्म है, त्र्योज है, द्वापरयुग्म है या कल्योज है? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। इसी प्रकार आयत-संस्थान पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान क्या द्रव्य की अपेक्षा कृतयुग्म हैं, व्योज हैं, द्वापरयुग्म हैं या कल्योज हैं? २. तत्थ णं जे से घणपरिमंडले से जहन्नेणं चत्तालीसइपएसिए, चत्तालीसइपएसोगाढे पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते। -विया.स.२५, उ.३, सु.३७-४१ ३५. पंचसु संठाणेसु एगत्त-पुहत्तेहिं दब्बट्ठयं पएसट्ठयं पडुच्च कडजुम्माइ परूवणंप. परिमंडले णं भंते ! संठाणे दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे, तेयोए, दावर जुम्मे, कलियोगे? उ. गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोए, दावर जुम्मे, कलियोए। प. वट्टे णं भंते ! संठाणे दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे कलियोए? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव आयते। प. परिमंडला णं भंते ! संठाणा दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मा तेयोगा, दावरजुम्मा, कलियोगा?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy