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________________ | १७७८ २४. सव्वदव्वेसुपएसेसुपज्जवेसु य वण्णाइ भावाभाव परूवणं- प. सव्वदव्वा णं भंते ! कतिवण्णा जाव कतिफासा पण्णता? उ. गोयमा ! अत्थेगइया सव्वदव्या पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता। अत्थेगइया सव्वदव्वा पंचवण्णा जाव चउफासा पन्नत्ता। अत्थेगइया सव्वदव्वा एगवण्णा, एगगंधा, एगरसा, दुफासा पन्नत्ता। अत्थेगइया सव्वदव्वा अवण्णा अगन्धा अरसा अफासा पन्नत्ता। एवं सव्वपएसा वि, सव्वपज्जवा वि। -विया.स.१२, उ.५,सु.३३-३४ २५. तीय-अणागय-सव्वद्धासु वण्णाइ अभाव परूवणं तीयद्धा अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता। एवं अणागयद्धा वि। एवं सव्वद्धा वि। -विया.स.१२, उ.५, सु.३५ २६. जम्बुद्दीवाइ-दीव समुद्देसु सवण्णा वण्णाई दव्वाणं अन्नमन्न बद्ध परूवणंप. अस्थि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दव्याई सवण्णाई पि __ अवण्णाई पि, सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाइं पि अरसाइं पि, सफासाई पि अफासाइं पि, अन्नमन्नबद्धाई, अन्नमन्नपुट्ठाई जाव अन्नमन्नघडताए चिठ्ठति? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. अत्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे दव्वाइं सवण्णाई पि अवण्णाई पि, सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाई पि अरसाईं पि, सफासाई पि अफासाई पि, अन्नमन्नबधाई अन्नमन्नपुट्ठाई जाव अन्नमन्न घडत्ताए चिट्ठति? उ. हंता,गोयमा ! अस्थि। प. अस्थि णं भंते ! धायइसंडे दीवे दव्वाइं सवण्णाई पि अवण्णाई पि, सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाइं पि अरसाई पि, सफासाई पि अफासाई पि, अन्नमन्नबद्धाई, अन्नमन्नपुट्ठाई जाव अन्नमन्नघडताए चिट्ठन्ति ? उ. हंता, गोयमा !अत्थि। एवं जाव सयंभुरमणसमुद्दे । -विया.स.११, उ.९,सु.२२-२५ २७. पोग्गलाणं संठाण भेयाणं वित्थरओ परूवणं सत्त संठाणा पन्नत्ता,तं जहा१. दीहे, २. रहस्से, ३. वट्टे, ४. तंसे, द्रव्यानुयोग-(३) २४. सर्वद्रव्यों, प्रदेशों और पर्यायों में वर्णादि के भावाभाव का प्ररूपणप्र. भंते ! सभी द्रव्य कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं? उ. गौतम ! कितने ही सर्वद्रव्य पाँच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाले कहे गए हैं। कितने ही सर्वद्रव्य पाँच वर्ण यावत् चार स्पर्श वाले कहे गए हैं। कितने ही सर्वद्रव्य एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाले कहे गए हैं। कितने ही सर्वद्रव्य वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से रहित कहे गए हैं। इसी प्रकार (सर्वद्रव्य के समान) सभी प्रदेश और समस्त पर्यायों के विषय में भी कथन करना चाहिए। २५. अतीत-अनागत और सर्वकाल में वर्णादि के अभाव का प्ररूपणअतीत काल (भूतकाल) वर्ण रहित यावत् स्पर्शरहित कहा गया है। इसी प्रकार अनागत (भविष्य) काल और सर्व अद्धाकाल भी वर्णादि-रहित हैं। २६. जम्बूद्वीप आदि द्वीप समुद्रों में सवर्ण-अवर्ण द्रव्यों का अन्योन्य बद्धत्वादि का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या जम्बूद्वीप नामक द्वीप में वर्णसहित और वर्णरहित, गन्ध सहित और गन्धरहित, रसयुक्त और रसरहित, स्पर्श युक्त और स्पर्शरहित द्रव्य अन्योन्यबद्ध अन्योन्यस्पृष्ट यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं? उ. हाँ, गौतम ! हैं। प्र. भंते ! क्या लवणसमुद्र में वर्णसहित और वर्णरहित, गन्ध सहित और गन्धरहित, रसयुक्त और रसरहित तथा स्पर्शयुक्त और स्पर्शरहित द्रव्य अन्योन्यबद्ध, अन्योन्यस्पृष्ट, यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? उ. हाँ, गौतम ! हैं। प्र. भंते ! क्या धातकीखण्ड द्वीप में वर्णसहित और वर्णरहित, गन्ध सहित और गन्ध रहित, रसयुक्त और रसरहित तथा स्पर्शयुक्त और स्पर्श रहित द्रव्य अन्योन्यबद्ध, अन्योन्यस्पृष्ट यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं? उ. हाँ, गौतम ! हैं। इसी प्रकार स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त जानना चाहिए। २७. पुद्गलों के संस्थान भेदों का विस्तृत प्ररूपण संस्थान सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. दीर्घ, २. ह्रस्व. ३. वृत्त (थाली की भाँति गोल) ४. त्रिकोण,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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