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________________ पुद्गल अध्ययन प. ६. २१ मणुस्सा णं भंते! कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता ? उ. गोयमा ! ओरालिय-वेउव्विय- आहारग-तेयगाईं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, कम्मगं जीवं च पहुच्च जहा नेरइयाणं। दं. २२-२४ वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया । - विया. स. १२, उ. ५, सु. १९-२५ १९. धम्मत्थिकायाई छसु दव्वेसु वण्णाइ परूवणंधम्मत्विकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्यिकाए जीवत्थिकाए अद्धासमए एए सव्वे अवण्णा जाव अफासा पण्णत्ता । पोग्गलत्थिकाए पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे पन्नत्ते । - विया. स. १२, उ. ५, सु. २६ २०. कम्मेसु लेस्सासु य वण्णाइ परूवणं नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए एयाणि पंच वण्णा, दुगंधा, पंच रसा चउफासा पण्णत्ता। प. कण्हलेस्सा णं भंते ! कइवण्णा जाव कइफासा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दव्वलेसं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता । भावलेसं पडुच्च अवण्णा अरसा अगंधा अफासा पण्णत्ता । एवं जाव सुकलेस्सा। - विया. स. १२, उ. ५, सु. २७-२९ २१. दिट्ठि- दंसण-नाण- अन्नाण सन्नासु वण्णाइ अभाव परूवणं सम्माद्दिट्टि मिच्छद्दिट्टि सम्मामिच्छद्दिठ्ठी, चक्खुदंसणे, अचक्खुदंसणे, ओहिदंसणे, केवलदंसणे, आभिनिबोहियनाणे जाव विभंगनाणे, आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा, एयाणि अवण्णाणि, अरसाणि, अगंधाणि, अफासाणि । - विया. स. १२, उ. ५, सु. ३० २२. पंचसु सरीरेसु तिसु य जोगेसु वण्णाइ परूवणंओरालियसरीरे जाव तेयगसरीरे एयाणि पंचबण्णाणि जाव अट्ठफासाणि, कम्मगसरीरे चउफासे । मणजोगे वइजोगे य चउफासे, कायजोगे अट्ठफासे । -विया. स. १२, उ. ५, सु. ३१ २३. उवओगेसु वण्णाइ अभाव परूवणं सागारोवयोगे य अणागारोवयोगे य अवण्णा जाव अफासा । -विया. स. १२, उ. ५, सु. ३२ १७७७ प्र. दं. २१. भंते ! मनुष्य कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस् पुद्गलों की अपेक्षा (मनुष्य) पाँच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाले कहे गए हैं। कार्मण शरीर और जीव की अपेक्षा नैरयिकों के समान कहना चाहिए। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों के लिए भी नैरयिकों के समान कथन करना चाहिए। १९. धर्मास्तिकायादि षडद्रव्यों में वर्णादि का प्ररूपण धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और अद्धासमय ये सब वर्ण रहित यावत् स्पर्श रहित हैं। पुद्गलास्तिकाय में पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श कहे गए हैं। २०. कर्म और लेश्याओं में वर्णादि का प्ररूपण ज्ञानावरणीय से अन्तराय कर्म पर्यन्त आठों कर्म पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! कृष्णलेश्या कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाली कही गई है? उ. गौतम ! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा पाँच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाली कड़ी गई है, भावलेश्या की अपेक्षा वह वर्ण, रस, गंध और स्पर्श रहित कही गई है। इसी प्रकार शुक्ललेश्या पर्यन्त जानना चाहिए। २१. दृष्टि-दर्शन-ज्ञान-अज्ञान और संज्ञाओं में वर्णादि के अभाव का प्ररूपण सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन, आभिनिबोधिक ज्ञान से ( श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मति- अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और) विभंगज्ञान पर्यन्त एवं आहारसंज्ञा (भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा) से परिग्रहसंज्ञा पर्यन्त, ये सब वर्ण रहित, रस रहित, गन्ध रहित और स्पर्श रहित हैं। २२. पाँच शरीर और तीन योगों में वर्णादि का प्ररूपण " औदारिक शरीर (वैक्रिय शरीर आहारक शरीर) से तेजस्शरीर पर्यन्त ये सब पाँच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाले हैं किन्तु कार्मण शरीर चार स्पर्श वाला है। मनोयोग और वचनयोग ये चार स्पर्श वाले हैं किन्तु काययोग आठ स्पर्श वाला है। २३. उपयोगों में वर्णादि के अभाव का प्ररूपण साकारोपयोग और अनाकारोपयोग ये दोनों वर्ण यावत् स्पर्श रहित हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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