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________________ १७६८ गंधा जहा-अट्ठपएसियस्स। रसा जहा-एयस्स चेव वन्ना। फासा जहा-चउप्पपएसियस्स। प. दसपएसिए णं भंते ! खंधे कइवन्ने, कइगंधे, कइरसे, कइफासे पण्णते? उ. गोयमा ! सिय एगवन्ने जहा नवपएसिए जाव सिय चउफासे पण्णते। एगवन्न दुवन तिवन्न चउवन्ना जहेव नवपएसियस्स, पंचवन्ने वि तहेव। णवर-(३२) सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दगा य सुक्किल्लगा य, बत्तीसइमो विभंगो भन्नइ, एवमेए एक्कग दुयग तियग चउक्कग पंचग संजोएसु दोन्नि सत्ततीसा भंगसया भवंति। गंधा जहा-नवपएसियस्स। रसा जहा-एयस्सचेव वन्ना। फासा जहा-चउप्पएसियस्स। द्रव्यानुयोग-(३) गन्ध-विषयक ६ भंग अष्टप्रदेशी स्कन्ध के समान हैं। रस-विषयक २३६ भंग इसी के (वर्ण के) समान कहने चाहिए। स्पर्श के ३६ भंग चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान समझने चाहिए। (इस प्रकार नव प्रदेशी स्कन्ध में वर्ण के २३६, गंध के ६, रस के २३६ और स्पर्श के ३६ ये सब मिलाकर ५१४ भंग होते हैं।) प्र. भंते ! दस-प्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! नव-प्रदेशी स्कन्ध के समान कदाचित् एक वर्ण यावत् कदाचित् चार स्पर्श वाला कहा गया है। एक वर्ण, दो वर्ण, तीन वर्ण और चार वर्ण के भंगों का कथन नव प्रदेशी स्कन्ध के समान कहना चाहिए। पाँच वर्ण का कथन भी नव-प्रदेशी स्कन्ध के समान है। विशेष-(३२) अनेक अंश काले, अनेक अंश नीले, अनेक अंश लाल, अनेक अंश पीले और अनेक अंश श्वेत होते हैं। यह बत्तीसवाँ भंग अधिक कहना चाहिए। इस प्रकार असंयोगी ५, द्विकसंयोगी ४0, त्रिकसंयोगी ८०, चतुष्कसंयोगी ८० और पंचसंयोगी ३२ ये सब मिलाकर वर्ण के २३७ भंग होते हैं। गन्ध के ६ भंग नव-प्रदेशी स्कन्ध के समान है। रस के २३७ भंग इसी के (वर्ण के) समान है। स्पर्श के ३६ भंग चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान है। (इस प्रकार दस प्रदेशी स्कन्ध में वर्ण के २३७, गन्ध के ६, रस के २३७ और स्पर्श के ३६ ये कुल ५१६ भंग होते हैं।) ११. दस प्रदेशी स्कन्ध के समान संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध के भी भंग कहने चाहिए। १२. इसी प्रकार असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध के भी भंग कहने चाहिए। १३. सूक्ष्मपरिणत अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के भी इसी प्रकार भंग कहने चाहिए। प्र. भंते ! बादर-परिणाम वाला (स्थूल) अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! कदाचित् एक वर्ण वाला यावत् कदाचित् पाँच वर्ण वाला होता है। कदाचित् एक गंध वाला और कदाचित् दो गंध वाला होता है, कदाचित् एक रस वाला यावत् कदाचित् पाँच रस वाला होता है। कदाचित् चार स्पर्श वाला यावत् कदाचित् आठ स्पर्श वाला कहा गया है। (अनन्तप्रदेशी बादर परिणाम स्कन्ध के) वर्ण, गन्ध और रसों के भंगों का कथन दसप्रदेशी स्कन्ध के समान कहना चाहिए। यदि चार स्पर्श वाला हो तो१. कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है, ११.जहा दसपएसिओ एवं संखेज्जपएसिओ वि, १२.एवं असंखेज्जपएसिओ वि, १३.सुहुमपरिणओ अणंतपएसिओ विएवं चेव। प. बायरपरिणए णं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कइवन्ने, कइगंधे, कइरसे,कइफासे पण्णते? उ. गोयमा !सिय एगवण्णे जाव सिय पंचवण्णे, सिय एगगंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे जाव सिय पंच रसे, सिय चउफासे जाव सिय अठ्ठफासे पण्णत्ते। वनगंधरसा जहा दसपएसियस्स। जइ चउफासे१.सव्वे कक्खडे,सव्वे गरुए, सव्वे सीए, सव्वे निद्धे,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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