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________________ १७५४ द्रव्यानुयोग-(३) A अतीतमणंतं सासयं समय लुक्खी, समयं अलुक्खी, समयं लुक्खी वा, अलुक्खी वा? पुव्विं च णं करणेणं अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणाम परिणमइ? अह से परिणामे निज्जिणे भवइ, तओ पच्छा एग वण्णे, एगरूवे सिया? उ. हंता, गोयमा ! एस णं पोग्गले जाव एगवण्णे एगरूवे सिया, प. एस णं भंते ! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं लुक्खी जाव एग वण्णे एगरूवे सिया? उ. हंता, गोयमा ! एस णं पोग्गले जाव एगवण्णे एगरूवे सिया, एवं अणागयमणंतं पि, प. एस णं भंते ! खंधेऽतीतमणतं सासयं समय लुक्खी जाव एगवण्णे एगरूवे सिया? उ. हता, गोयमा ! एवं चेव खंधे वि जहा पोग्गले, एवं पडुप्पन्न, अणागयमणतं पिजहा पोग्गले। -विया.स.१४, उ.४,सु.१-४ ९. परमाणु पोग्गलेसुखंधेसु य वण्णाइ परूवणं प. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कइवन्ने जाव कइफासे पण्णत्ते? अनन्त शाश्वत अतीतकाल में एक समय रुक्ष स्पर्श वाला था, एक समय अरुक्ष (स्निग्ध) स्पर्शवाला था, एक समय रुक्ष-अरुक्ष स्पर्श वाला हुआ था ? क्या पहले प्रयोगकरण या विश्रसाकरण से अनेक वर्ण और अनेक रूप परिणाम परिणत हुए? तथा अनेक वर्णादि परिणामों के क्षीण होने पर यह पुद्गल एक वर्ण वाला और एक रूप वाला हुआ था? उ. हाँ, गौतम ! यह पुद्गल (अनन्त शाश्वत अतीतकाल में) यावत् एक वर्ण और एक रूप वाला हुआ था। प्र. भंते ! यह पुद्गल शाश्वत वर्तमान काल में एक समय रुक्ष स्पर्शवाला यावत् एक वर्ण और एक रूप वाला होता है? उ. हाँ, गौतम ! यह पुद्गल यावत् एक वर्ण और एक रूप वाला होता है। इसी प्रकार अनन्त अनागत (भविष्य) के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! यह स्कन्ध अनन्त शाश्वत अतीत काल में एक समय रुक्ष-स्पर्श वाला यावत् एक वर्ण और एक रूप वाला हुआ था? उ. हाँ गौतम ! पूर्वोक्त पुद्गल के समान अतीत कालवर्ती स्कन्ध के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार वर्तमान और अनागत कालवर्ती स्कन्ध के सम्बन्ध में भी पुद्गल के समान कहना चाहिए। ९. परमाणु पुद्गल और स्कन्धों के वर्णादि का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल कितने वर्ण यावत् किंतने स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा गया है। प्र. भंते ! द्विप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! कदाचित् एक वर्ण वाला, कदाचित् दो वर्ण वाला, कदाचित् एक गंध वाला, कदाचित् दो गंध वाला, कदाचित् एक रसवाला, कदाचित् दो रसवाला, कदाचित् दो स्पर्श वाला, कदाचित् तीन स्पर्श वाला और कदाचित् चार स्पर्शवाला कहा गया है। इसी प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध के सम्बन्ध में कहना चाहिए। विशेष-कदाचित् एक वर्ण वाला, कदाचित् दो वर्ण वाला और कदाचित् तीन वर्णवाला होता है। इसी प्रकार (त्रिप्रदेशी स्कन्धों के) रसों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। शेष वर्णन द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान है। इसी प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। विशेष-कदाचित् एक वर्ण वाला यावत् कदाचित् चार वर्ण वाला होता है। इसी प्रकार (चतुष्प्रदेशी स्कन्धों के) रसों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। उ. गोयमा ! एगवन्ने, एगगन्धे, एगरसे, दुफासे पण्णत्ते। प. दुपएसिएणं भंते ! खंधे कइवन्ने जाव कइफासे पण्णते? उ. गोयमा ! सिय एगवन्ने, सिय दुवन्ने, सिय एगगंधे सिय दुगंधे, सिय एगरसे सिय दुरसे, सिय दुफासे सिय तिफासे सिय चउफासे पण्णत्ते। एवं तिपएसिए वि, णवरं-सिय एगवन्ने, सिय दुवन्ने, सिय तिवन्ने। एवं रसेसुवि, सेसं जहा-दुपएसियस्स। एवं चउप्पएसिए वि, णवर-सिय एगवन्ने जाव सिय चउवन्ने, एवं रसेसु वि,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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