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________________ पुद्गल अध्ययन १. कालवन्नपरिणामे जाव ५. सुक्किल्लवन्नपरिणामे, एवं एएण अभिलावेगं गंधपरिणामे दुविहे, रसपरिणामे पंचविहे, २ फासपरिणामे अट्ठविहे, ३ प. संठाणपरिणामे णं भंते! कद्रविहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा पंचविहे पण्णत्ते तं जहा " १. परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव ५. आययसंठाणपरिणामे । -विया. स. ८, उ. १, सु. १९-२२ ६. दव्वाइ विवक्खया रूवी अजीव (पोग्गल) दव्वस्स परूवणंएगत्तेणं पुहतेणं, खधा य परमाणुओ लोएगदेसे लोए य, भइयव्वा ते उ खेत्तओ ॥ संत पप्प ते Sणाई, अपज्जवसिया विय। ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया थिय ॥ असंखकालमुक्कोसं, एगं समयं जहन्निया । अजीवाण य रूवीणं, ठिई एसा वियाहिया ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, एगं समयं जहन्नयं । अजीवाण व रूवीण, अंतरेयं वियाहियं ॥ ७. पोग्गल परिणामाणं बावीसं भेया बावीसविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा १. कालवण्णपरिणामे, ३. लोहियवण्णपरिणामे, ५. सुक्किल्लवण्णपरिणामे, ७. दुब्भगंधपरिणामे, ९. कडुयरसपरिणामे, ११. अंबिलरसपरिणामे, २. नीलवण्णपरिणामे, ४. हालिद्दवण्णपरिणामे, ६. सुभिगंधपरिणामे, ८. तित्तरसपरिणामे, १०. कसायरसपरिणामे, १२. महुररसपरिणामे, १३. कक्खडफासपरिणामे, १४. मउयफासपरिणामे, १६. लहफासपरिणामे, १८. उसिणफासपरिणामे, २०. लुक्खफासपरिणामे, २१ अगुरुलहुफासपरिणामे २२. गुरुलहुफासपरिणामे, - सम. २२, सु. ६ ८. तिकालवत्तीपरमाणुपोग्गलाणं खंधाण य वण्णाइ परिणाम परूवणं प. एस णं भंते! पोग्गले, १५. गुरुफासपरिणामे, १७. सीयफासपरिणामे, १९. णिद्धफासपरिणामे, -उत्त. अ. ३६, गा. ११-१४ २. पंचरसा पण्णत्ता, तं जहा " १. पंच वण्णा पण्णत्ता, तं जहा १. किण्हा, २. नीला, ३. लोहिया, ४ . हालिद्दा, ५. सुक्किल्ला । - १. तित्ता, २. कडुया, ३. कसाया, ४. अंबिला, ५. महुरा । - ठाणं. अ. ५, उ. १, सु. ३९० प्र. उ. १७५३ १. कृष्ण वर्ण परिणाम यावत् ५. शुक्लवर्ण परिणाम । इसी प्रकार के अभिलाप से दो प्रकार के गंध- परिणाम, पाँच प्रकार के रस परिणाम और आठ प्रकार के स्पर्श-परिणाम कहने चाहिए। भंते ! संस्थान- परिणाम कितने प्रकार के कहे गये हैं? गौतम ! संस्थान- परिणाम पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. परिमण्डल संस्थान परिणाम यावत् ५. आयत-संस्थान परिणाम । ६. द्रव्यादि की अपेक्षा रूपी अजीव (पुद्गल) द्रव्य का प्ररूपणपरमाणु के एक रूप होने से स्कन्ध और उनके पृथक् पृथक् होने से परमाणु बनते हैं (यह द्रव्य की अपेक्षा से) क्षेत्र की अपेक्षा से वे ( स्कन्ध) लोक के एक देश में तथा सम्पूर्ण लोक में भाज्य हैं अर्थात् असंख्य विकल्प वाले हैं। सन्तति (काल) प्रवाह की अपेक्षा से वे (स्कन्ध आदि) अनादि और अनन्त हैं तथा स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त है। रूपी अजीवों (पुद्गलों) की स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट असंख्यात काल की कही गई है। रूपी अजीवों का अन्तर (स्व स्थान से च्युत होकर पुनः उसी स्थान पर आने का काल) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल है। ७. पुद्गल परिणामों के बावीस भेद पुद्गल परिणाम बावीस प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. कृष्ण वर्ण परिणाम, ३. रक्तवर्ण-परिणाम, ५. शुक्लवर्ण- परिणाम, ७. दुर्गन्ध परिणाम, ९. कटुकरस-परिणाम, ११. अम्लरस - परिणाम, १३. कर्कशस्पर्श-परिणाम, १५. गुरुस्पर्श- परिणाम, १७. शीतस्पर्श-परिणाम, १९. स्निग्धस्पर्श परिणाम, २१. अगुरुलघुस्पर्श-परिणाम, २. नीलवर्ण- परिणाम, ४. पीतवर्ण-परिणाम, ६. सुगन्ध- परिणाम, ८. तिक्तरस परिणाम, १०. कषायरस परिणाम, १२. मधुररस - परिणाम, १४. मृदुस्पर्श-परिणाम, १६. लघुस्पर्श-परिणाम, १८. उष्णस्पर्श-परिणाम, २०. रुक्षस्पर्श-परिणाम, २२. गुरुलघुस्पर्श- परिणाम, ८. त्रिकालवर्ती परमाणु पुद्गलों और स्कन्धों के वर्णादि परिणाम का प्ररूपण प्र. भंते! क्या यह पुद्गल (परमाणु) ३. अट्ठ फासा पण्णत्ता, तं जहा १. कक्कडे, २. मउए, ३. गरुए, ४. लहुए, ५. सीए, ६. उसिणे, ७. निद्धे, ८. लुक् । - ठाणं. ८, सु. ५९९
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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