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________________ समुद्घात अध्ययन २०. केवलिसमुग्घायस्स समय परूवणं प. कइसमइए णं भंते! केवलिसमुग्धाए पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! अङ्गसमइए पण्णत्ते, तं जहा १. पढमे समए दंड करेड. २. बिइए समए कवाडं करेइ, ३. तइए समए मंथ करेड, ४. चउत्थे समए लोगं पूरेइ, ५. पंचमे समए लोग पंडिसाहरइ. ६. छडे समए मंथ पडिसाहरइ, ७. सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, ८. अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, दंडं पडिसाहरिता तओ पच्छा सरीरत्वे भवइ । २१. आउज्जीकरणस्स समय परूवणं - पण्ण. प. ३६, सु. २१७२ प. कइसमइए णं भंते! आउज्जीकरणे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आउज्जीकरणे पण्णत्ते । २ - पण्ण. प. ३६, सु. २१७१ २२. केवलिसमुग्धाए जोग जुंजण परूवणंप. से णं भंते! तहासमुग्धायगए किं मणजोगं जुंजइ, वइजोगं जुजइ, कायजोगं जुजइ ? उ. गोयमा ! णो मणजोगं जुंजइ, णो वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ । प. कायजोगं णं भंते! जुजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ ? ओरालियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? किं वेउव्ययसरीरकायजोगं जुजइ ? वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? कि आहारगसरीरकायजोगं जुजइ ? आहारगमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? किं कम्मगसरीरकायजोगं जुजइ ? उ. गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं पि जुंजइ, ओरालियमीसासरीरकायजोगं पि जुंजइ, णो येउब्वियसरीरकायजोगं जुजइ, उव्वयमी सासरीरकायजोगं जुंजइ, णो आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ, णो आहारगमीसासरीरकायजोग जुजइ, कम्मगसरीरकायजोगं पि जुजइ, पढमऽट्ठमेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, १ (क) ठाणं. अ. ८, सु. ६५२ (ख) सम. सम. ८, सु. ७ १७०५ २०. केवली समुद्घात के समय का प्ररूपण प्र. भंते! केवलीसमुद्घात कितने समय का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह आठ समय का कहा गया है, यथा १. प्रथम समय में आत्म प्रदेशों को दण्डाकार रूप में करता है, २. द्वितीय समय में कपाटाकार (किवाड़) रूप में करता है, ३. तृतीय समय में मन्धानि के आकार का करता है, ४. चौथे समय में लोक को व्याप्त करता है, ५. पंचम समय में लोक पूर्ण आत्मप्रदेशों को सिकोड़ता है, ६. छठे समय में मन्धानकृत आत्मप्रदेशों को सिकोड़ता है, ७. सातवें समय में कपाटकृत आत्मप्रदेशों को सिकोड़ता है, ८. आठवें समय में दण्डाकार आत्मप्रदेशों को सिकोड़ता है और दण्ड का संकोच करते ही पूर्ववत् शरीरस्थ हो जाता है। २१. आवर्जीकरण के समय का प्ररूपण प्र. भंते! आवर्जीकरण कितने समय का कहा गया है ? उ. गौतम ! आवर्गीकरण असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है। २२. केवली समुद्घात में योग योजन का प्ररूपण प्र. भंते! तथा रूप से समुद्घात प्राप्त केवली क्या मनोयोग का प्रयोग करता है, वचनयोग का प्रयोग करता है या काययोग का प्रयोग करता है? (ग) उव. सु. १४४ उ. गौतम ! वह मनोयोग का प्रयोग नहीं करता, वचनयोग का प्रयोग नहीं करता, किन्तु काययोग का प्रयोग करता है। प्र. भंते! काययोग का प्रयोग करता हुआ केवली क्या औदारिकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है ? या औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का प्रयोग करता है ? क्या वैक्रिय शरीर काययोग का प्रयोग करता है, या वैक्रियमिश्रशरीर काययोग का प्रयोग करता है ? क्या आहारकशरीर काययोग का प्रयोग करता है ? या आहारकमिश्रशरीर काययोग का प्रयोग करता है ? क्या कार्मणशरीर काययोग का प्रयोग करता है ? उ. गौतम ! (काययोग का प्रयोग करता हुआ केवली) औदारिकशरीरकाययोग का भी प्रयोग करता है, औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का भी प्रयोग करता है. यह वैक्रियशरीर काययोग का प्रयोग नहीं करता है, क्रियमिश्रशरीर काययोग का प्रयोग भी नहीं करता है, आहारकशरीर काययोग का प्रयोग भी नहीं करता है, आहारकमिश्रशरीर काययोग का प्रयोग भी नहीं करता है, किन्तु कार्मणशरीर काययोग का प्रयोग करता है। प्रथम और अष्टम समय में औदारिकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, २. उव. सु. १४३
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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