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बिइय-छट्ठ-सत्तमेसु समएसु ओरालियमीसगसरीरकायजोगं जुंजइ, तइय-चउत्थ-पंचमेसु समएसु कम्मगसरीरकायजोगं झुंजइ।'
-पण्ण.प.३६, सु.२१७३ २३. केवलिसमुग्घायाणंतरं मनोयोगाइजंजण परूवणंप. से णं भंते ! तहा समुग्घायगए सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ
परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ?
उ. गोयमा ! णो इणढे समढे,
से णं तओ पडिनियत्तइ, तओ पडिनियत्तिया तओ पच्छा मणजोगं पि जुंजइ, वइजोगं पि जुंजइ, कायजोगं पि
झुंजइ।
भंते ! मणजोगं झुंजमाणे किं सच्चमणजोगं झुंजइ, मोसमणजोगं झुंजइ, सच्चामोसमणजोगं झुंजइ, असच्चामोसमणजोगं जुंजइ?
उ. गोयमा ! सच्चमणजोगं जुंजइ, णो मोसमणजोगं जुंजइ,
णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ, असच्चामोसमणजोगं पि
जुंजइ। प. भंते ! वयजोगं जुजमाणे-किं सच्चवइजोगं झुंजइ,
मोसवइजोगं झुंजइ, सच्चामोसवइजोगं झुंजइ, असच्चामोसवइजोगं जुंजइ?
द्रव्यानुयोग-(३) ) दूसरे, छठे और सातवें समय में औदारिकमिश्र शरीरकाययोग का प्रयोग करता है। तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में कार्मणशरीरकाययोग का
प्रयोग करता है। २३. केवली समुद्घातानंतर मनोयोगादि के योजन का प्ररूपण
प्र. भंते ! तथारूप समुद्घात को प्राप्त केवली क्या सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं और सभी दुःखों का
अन्त करते हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
पहले वे उस अवस्था से प्रतिनिवृत्त होते हैं और प्रतिनिवृत्त होकर मनोयोग का भी प्रयोग करते हैं, वचनयोग का भी
प्रयोग करते हैं और काययोग का भी प्रयोग करते हैं। प्र. भंते ! मनोयोग का प्रयोग करता हुआ केवली क्या
सत्यमनोयोग का प्रयोग करता है, मृषामनोयोग का प्रयोग करता है, सत्यामृषामनोयोग का प्रयोग करता है या
असत्यामृषामनोयोग का प्रयोग करता है? उ. गौतम ! वह सत्यमनोयोग का प्रयोग करता है और असत्या
मृषामनोयोग का भी प्रयोग करता है, किन्तु मृषामनोयोग का
और सत्यामृषामनोयोग का प्रयोग नहीं करता है। प्र. भंते ! वचनयोग का प्रयोग करता हुआ केवली क्या
सत्यवचनयोग का प्रयोग करता है, मृषावचनयोग का प्रयोग करता है, सत्यामृषावचनयोग का प्रयोग करता है या
असत्यामृषावचनयोग का प्रयोग करता है? उ. गौतम ! वह सत्यवचनयोग का प्रयोग करता है और असत्या
मृषावचनयोग का भी प्रयोग करता है किन्तु मृषावचनयोग का
और सत्यामृषावचनयोग का प्रयोग नहीं करता है। (केवलिसमुद्घातकर्ता केवली) काययोग का प्रयोग करते हुए आता है, जाता है, ठहरता है, बैठता है, करवट बदलता है (लेटता है), लांघता है, छलांग मारता है और प्रातिहारिक (वापस लौटाये जाने वाले) पीठ (चौकी), पट्टा, शय्या
(वसति-स्थान) तथा संस्तारक आदि वापस लौटाता है। २४. केवली समुद्घातानंतर और मोक्षगमन का प्ररूपणप्र. भंते ! वह तथारूप सयोगी (केवलिसमुद्घातप्रवृत्त केवली)
सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं? उ. गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ नहीं है।
वह सर्वप्रथम जघन्य (मनोयोगी) संज्ञी पंचेन्द्रिय-पर्याप्त के नीचे असंख्यातगुणहीन मनोयोग का पूर्व निरोध करते हैं,
उ. गोयमा ! सच्चवइजोगं जुजइ,णो मोसवइजोगं जुंजइ,णो
सच्चामोसवइजोगं जुंजइ, असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ।
कायजोगं झुंजमाणे-आगच्छेज्ज वा, गच्छेज्ज वा,चिट्ठज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयट्टेज्ज वा, उल्लंघेज्ज वा, पलंघेज्ज वा, पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणेज्जा।
-पण्ण. प.३६, सु.२१७४
२४. केवलिसमुग्घायाणंतर मोक्खगमण परूवणंप. से णं भंते ! तहासजोगी सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं
करेइ? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे।
से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं पढमं मणजोगं णिरुंभइ, तओ अणंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं दोच्चं वइजोगं णिरुंभइ, तओ अणंतरं च णं सुहमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुण-परिहीणं तच्चं कायजोगं णिरुंभइ।
तदनन्तर जघन्य (वचन) योग वाले द्वीन्द्रिय पर्याप्त के नीचे असंख्यातगुणहीन वचनयोग का निरोध करते हैं।
तत्पश्चात् जघन्य (काय) योग वाले सूक्ष्मपनक जीव के नीचे असंख्यातगुणहीन तृतीय काययोग का निरोध करते हैं।
१.
उव.सु.१४५-१४६
२. उव.सु.१४७-१५०