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________________ समुद्घात अध्ययन जइ अस्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा। एवं एए चउव्वीसं चउव्वीसा दंडगा सव्वे पुच्छाए भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते। -पण्ण. प.३६, सु. २१०१-२१२४ ११. समुग्घायाणंजीव-चउवीसदंडेसुखेत्तकाल किरिया परूवणं- १६९१ यदि हुए हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शत पृथक्त्व हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! वे कदाचित् संख्यात होने वाले हैं और कदाचित् असंख्यात होने वाले हैं। इस प्रकार इन चौवीस दण्डकों में चौवीस दण्डक पृच्छा घटित करके उसी के अनुसार वैमानिकों के वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहने चाहिए। ११. जीव-चौवीस दंडकों में समुद्घातों के क्षेत्र काल और क्रिया का प्ररूपण१. वेदना समुद्घातप्र. भंते ! वेदनासमुद्घात से समवहत हुआ जीव समवहत होकर जिन पुद्गलों को (अपने शरीर से बाहर) निकालता है तो भंते ! उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र परिपूर्ण होता है तथा कितना क्षेत्र स्पृष्ट होता है? उ. गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा शरीरप्रमाण क्षेत्र को नियमतः छहों दिशाओं में परिपूर्ण करता है और इतने ही क्षेत्र से स्पृष्ट होता है। प्र. भंते ! वह क्षेत्र कितने काल में परिपूर्ण होता है और कितने काल में स्पृष्ट होता है? उ. गौतम ! एक समय, दो समय या तीन समय के विग्रह काल में परिपूर्ण होता है और इतने ही काल से स्पृष्ट होता है। १. वेयणा समुग्घाएप. जीवे णं भंते ! वेयणासमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभइ तेहि णं भंते ! पोग्गलेहिं केवइए खेत्ते अफुण्णे, केवइए खेत्ते फुडे? उ. गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, णियमा छद्दिसिं एवइए खेत्ते अफुण्णे, एवइए खेत्ते फुडे। प. से णं भंते ! खेत्ते केवइकालस्स अफुण्णे केवइकालस्स फुडे? उ. गोयमा ! एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, विग्गहेण वा एवइकालस्स अफुण्णे, एवइकालस्स फुडे। प. ते णं भंते ! पोग्गला केवइकालस्स णिच्छुभइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेण वि ___अंतोमुहुत्तस्स। प. ते णं भंते ! पोग्गला णिच्छूढा समाणा जाई तत्थ पाणाई जाव सत्ताइं अभिहणंति, वत्तेति, लेसेंति, संघाएंति संघटुंति, परियाति, किलावेंति, उद्दवेंति, तेहिंतो णं भंते ! से जीवे कइकिरिए? उ. गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। प. ते णं भंते ! जीवा ताओ जीवाओ कइकिरिया? प्र. भंते ! (जीव) उन पुद्गलों को कितने काल में (आत्मप्रदेशों से) बाहर निकालता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त में (वह पुद्गलों को बाहर निकालता है।) प्र. भंते ! वे बाहर निकाले गए पुद्गल वहाँ (स्थित) जिन प्राणों यावत् सत्वों का अभिघात करते हैं, घुमाते हैं,छूते हैं,एकत्रित करते हैं, संघट्टित करते हैं, परिताप पहुँचाते हैं, मूर्छित करते हैं और उपद्रवित करते हैं तब भंते ! वह जीव कितनी क्रियाओं वाला होता है? उ. गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पाँच क्रिया वाला होता है। प्र. भंते ! (अभिघात आदि करने वाले) वे जीव (अभिघात आदि किये जा रहे) उन जीवों के निमित्त से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं? उ. गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पाँच क्रिया वाले होते हैं। प्र. भंते ! वह जीव और वे जीव, अन्य जीवों का परम्परा में घात करने से कितनी क्रिया वाले होते हैं? उ. गौतम ! वे तीन क्रिया वाले भी होते हैं, चार क्रिया वाले भी होते हैं और पाँच क्रिया वाले भी होते हैं। प्र. द.१.भंते ! वेदनासमुद्घात से समवहत हुआ नारक समवहत होकर जिन पुद्गलों को (अपने शरीर से बाहर निकालता है, उ. गोयमा ! सिय तिकिरिया, सिय चउकिरिया, सिय पंचकिरिया। प. से णं भंते ! जीवे ते य जीवा अण्णेसिं जीवाणं परंपराघाएणं कइकिरिया? उ. गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि। प. द. १. णेरइए णं भंते ! वेयणासमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभइ,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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