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________________ १६९० एवमेए चउवीसंचउवीसा दंडगा भाणियव्वा। प. दं. १. णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवइया वेयणा समुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! अणंता। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणियत्ते। एवं सव्वजीवाणं भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते। एवं जाव तेजस्समुग्घाओ। णवर-उवउंजिऊण णेयव्वं जस्सऽत्थि वेउव्विय तेजसा। प. द. १. णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवइया आहारग समुग्घाया अतीता? .उ. गोयमा ! णत्थि। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! णत्थि। २-२४. एवं जाव वेमाणियत्ते। णवर-मणूसत्ते अतीता असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा। एवं जाव वेमाणियाणं। णवरं-वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीता अणंता, पुरेक्खडा अणंता। मणूसाणं मणूसत्ते अतीता सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा। एवं पुरेक्खडा वि। सेसा सव्वे जहाणेरइया। एवं एए चउव्वीसंचउव्वीसा दंडगा भाणियव्वा। प. दं. १. जेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवइया केवलि समुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! णत्थि! प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा !णत्थि। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणियत्ते। णवरं-मणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा। - द्रव्यानुयोग-(३) ) इस प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में जानना चाहिए। प्र. दं.१. भंते ! (बहुत-से) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने वेदना समुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! अनन्त होने वाले हैं। इसी प्रकार वैमानिकपर्याय पर्यन्त होने वाले हैं। इसी प्रकार सर्व जीवों के वैमानिकों के वैमानिकपर्याय पर्यन्त (अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात) कहने चाहिए। इसी प्रकार तैजस्समुद्घात पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-जिसके वैक्रिय और तैजससमुद्घात सम्भव हो उसी के उपयोग लगाकर कहना चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने आहारक समुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं है। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं होने वाला है। २-२४. इसी प्रकार वैमानिकपर्याय पर्यन्त (अतीत अनागत आहारकसमुद्घात का) कथन करना चाहिए। विशेष-मनुष्यपर्याय में अतीत और अनागत में असंख्यात (आहारकसमुद्घात) होते हैं। इसी प्रकार वैमानिकों के पर्याय पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अतीत और अनागत अनन्त होते हैं। मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात अतीत में हुए हैं। इसी प्रकार अनागत के लिए भी कहना चाहिए। शेष सब कथन नारकों के समान करना चाहिए। इस प्रकार इन चौबीस दण्डकों के चौबीस दण्डक होते हैं। प्र. दं. १. भंते ! नारकों के नारक पर्याय में रहते हुए कितने केवलिसमुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं हुआ। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं होने वाला है। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-मनुष्यपर्याय में अतीत में (केवलिसमुद्घात) नहीं हुए किन्तु अनागत में असंख्यात होंगे। इसी प्रकार वैमानिकों के पर्याय पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अतीत (केवलिसमुद्घात) नहीं हुए हैं किन्तु अनागत अनन्त होंगे। मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में अतीत (केवलिसमुद्घात) कदाचित् हुए हैं और कदाचित् नहीं हुए हैं। एवं जाव वेमाणिया, णवरं-वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीता णस्थि, पुरेक्खडा अणंता। मणूसाणं मणूसत्ते अतीता सिय अस्थि, सिय णत्थि।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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