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________________ ( समुद्घात अध्ययन ६. आहारगसमुग्घाएप. दं. १. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया आहारगसमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! णत्थि। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! णत्थि। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणियत्ते। णवर-दं. २१ मणूसत्ते अतीता कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि । जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, उक्कोसेणं तिण्णि। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि। जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि। एवं सव्वजीवाणं मणूसेसुभाणियव्वं । मणूसस्स मणूसत्ते अतीता कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि। - १६८९ ) ६. आहारक समुद्घातप्र. दं. १. भंते ! एक-एक नारक के नारक-पर्याय में कितने आहारकसमुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! एक भी व्यतीत नहीं हुआ है। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं होने वाला है। द. २-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्याय पर्यन्त (अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात का) कथन करना चाहिए। विशेष-दं.२१ मनुष्यपर्याय में अतीत में (आहारकसमुद्घात) किसी के हुए हैं और किसी के नहीं हुए हैं। जिसके हुए हैं, उसके जघन्य एक या दो और उत्कृष्ट तीन हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! किसी के होने वाले हैं और किसी के नहीं होने वाले हैं। जिसके होने वाले हैं उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होने वाले हैं। इसी प्रकार समस्त जीवों और मनुष्यों के (अतीत और अनागत आहारक समुद्घात) जानना चाहिए। मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत में (आहारकसमुद्घात) किसी के हुए हैं और किसी के नहीं हुए हैं। जिसके हुए हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार हुए हैं। इसी प्रकार अनागत (आहारकसमुद्घात) जानने चाहिए। इस प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में वैमानिक पर्याय पर्यन्त (आहारकसमुद्घात) तक कहना चाहिए। ७. केवलि समुद्घातप्र. दं.१. भंते ! एक-एक नैरयिक के नारक पर्याय में कितने केवलिसमुद्घात व्यतीत हुए हैं ? । उ. गौतम ! एक भी नहीं हुआ है। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं? उ. गौतम ! भविष्य में भी नहीं होने वाले हैं। २-२४. इसी प्रकार वैमानिकपर्याय पर्यन्त (केवलिसमुद्घात) कहना चाहिए। विशेष-मनुष्यपर्याय में अतीत में (केवलिसमुद्घात) नहीं हुआ है। अनागत में (केवलिसमुद्घात) किसी के होने वाले हैं, किसी के नहीं होने वाले हैं। जिसके होने वाला है, उसके एक होने वाला है। मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत में (केवलिसमुद्घात) किसी के हुआ है और किसी के नहीं हुआ है, जिसके हुआ है उसके एक हुआ है। इसी प्रकार अनागत (केवलिसमुद्घात) के विषय में भी कहना चाहिए।) जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि। एवं पुरेखडा वि। एवमेए वि चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते। ७. केवलिसमुग्घाएप. दं.१. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया केवलिसमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! णत्थि। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! णत्थि। २-२४. एवं जाव वेमाणियत्ते। णवरं-मणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि, जस्सऽस्थि एक्को। मणूसस्स मणूसत्ते अतीता कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि एक्को। एवं पुरेक्खडा वि।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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