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________________ गम्मा अध्ययन १६४९ तीसरे गमक में-जघन्य पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम, उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम, चौथे गमक में जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम, उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम, पांचवें गमक में-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम, उत्कृष्ट तीन अन्तर्मुहूर्त अधिक छासठ सागरोपम, छठे गमक में-जघन्य पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम, उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम, तइय गमए-जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावटिंछ सागरोवमाई तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई। चउत्थ गमए-जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छावठिं सागरोवमाई तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं। पंचम गमए-जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छावठि सागरोवमाइं तिहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई। छट्ठ गमए-जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई। सत्तम गमए-जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छावळिं सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई। अट्ठम गमए-जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छावठि सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं। नवम गमए-जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावटिट्ठ सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(१-९) -विया. स. २४, उ. २०, सु. २-१०, ५२. पंचिंदिय तिरिक्खजोणिए उववज्जतेसु एगिदिय- विगलिंदियाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति-किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति? सातवें गमक में-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम, उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम, आठवें गमक में-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम, उत्कृष्ट दो अन्तर्मुहूर्त अधिक छासठ सागरोपम, नौवें गमक में-जघन्य पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम, उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (१-९) उ. गोयमा ! उववाओ जहा पुढविकाइयउद्देसए भणिओ तहा भाणियव्यो। प. पुढविकाइए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तट्ठिईएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? ५२. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! यदि वह (संज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होता है तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होता है यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होता है ? उ. गौतम! पृथ्वीकायिक-उद्देशक में कहे अनुसार यहां उपपात समझना चाहिए। प्र. भंते ! जो पृथ्वीकायिक जीव पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते! वह कितने काल की स्थिति वाले (पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों) में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की _ स्थिति वाले (पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों) में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे पृथ्वीकायिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! अपने स्वस्थान में उत्पन्न होने का जो कथन किया है, वही पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले के लिए कहना चाहिए। विशेष-परिमाण-जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं, भवादेश से-जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करते हैं। उ. गोयमा! जच्चेव अप्पणो सट्ठाणे उववज्जमाणस्स वत्तव्यया भणिया सच्चेव पंचिंदियतिरिखजोणिएस वि उववज्जमाणस्स भाणियव्वा, णवरं-परिमाणे जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। भवादेसेणं-जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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