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________________ १६५० द्रव्यानुयोग-(३) कालादेसो-उवउंजिऊण भाणियव्यो । (पढमो गमओ) कालादेश-उपयोग लगाकर कहना चाहिए। (यह प्रथम गमक है) एवं णव वि गमगा पढम गमग सरिसा भाणियव्वा, इसी प्रकार नौ ही गमक प्रथम गमक के सदृश कहने चाहिए। णवरं-उववाय ठिई संवेहो य उवउंजिऊण विशेष-उपपात, स्थिति और संवेध उपयोग लगाकर कहने भाणियव्यो ।(२-९) चाहिए।(२-९) एवं आउक्काइया जाव चउरिदिया उववाएयव्वा। इसी प्रकार अप्काय से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त उपपात आदि कहना चाहिए। णवर-सव्वत्थ अप्पणो लद्धी भाणियव्वा। विशेष-सर्वत्र अपनी-अपनी लब्धि का कथन करना चाहिए। उववाय ठिई संवेहाइ उवउँजिऊण भाणियव्वं। (१-९) उपपात स्थिति संवेध आदि उपयोग पूर्वक कहने -विया. स. २४, उ.२०, स.११-१५ चाहिए। (१-९) ५३. पंचिंदियतिरिक्खजोणिए उववज्जतेसु असण्णि पंचिंदिय ५३. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी तिरिक्खजोणियाणं उववायाइ वीसंदारं परूवणं पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप. भंते ! जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति-किं प्र. भन्ते ! यदि वे पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, हैं तो क्या वे संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति? होते हैं या असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं.? उ. गोयमा ! दोहिं वि उववति । उ. गौतम ! वे दोनों से ही आकर उत्पन्न होते हैं। एवं जहेव पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स इस प्रकार जैसे पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले पंचेन्द्रिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स उववाओ भणिओ तहा तिर्यञ्चों का उपपात कहा है तदनुसार यहां भी कहना चाहिए। भाणियव्यो। प. असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए प्र. भन्ते ! असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जो पंचेन्द्रिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते । वह कितने केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तट्ठिईएस, उक्कोसेणं उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति? प्र. भन्ते ! वे (असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! अवसेसं जहेव पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स उ. गौतम ! शेष सम्पूर्ण कथन पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने असण्णिस्स वत्तव्वया तहेव निरवसेसं इह विभाणियव्वा । वाले असंज्ञी के समान यहाँ भी कहना चाहिए। णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं विशेष-कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियं पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) (पढमो गमओ) बिइयगमए एस चेव लद्धी, द्वितीय गमक में भी यही कथन करना चाहिए। णवर-उववाय ठिई अणुबंधो य उवउंजिऊण विशेष-उपपात स्थिति अनुबन्ध उपयोग पूर्वक कहने चाहिए। भाणियव्यो। कालादेसेणं-जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि कालादेश से-जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियाओ, एवइयं अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि जितना काल व्यतीत करता काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा (बिइओ है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है (यह द्वितीय गमओ) गमक है) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं वही (असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिईएसु उक्कोसेण वि पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो तो वह जघन्य पल्योपम पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले और उत्कृष्ट भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले (संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) में उत्पन्न होता है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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