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________________ [ द्रव्यानुयोग-(३) ) उ. गौतम ! वे दोनों से आकर उत्पन्न होते हैं। ( १६३८ - उ. गोयमा ! दोहिं वि उववज्जंति। -विया. स. २४, उ.१२, सु. २७-२८ ३३. पुढविकाइए उववज्जतेसु असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उववायाइ वीसंदारं परूवणंप. असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्ठिईएसु, उक्कोसेणं बावीस वाससहस्सट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति ? उ. गोयमा ! सच्चेव बेइंदियस्स गमगाणं लद्धी भाणियव्वा, णवर-सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। पंच इंदिया। ठिई-अणुबंधो य जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। भवादेसेणं सव्वगमएसु जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। पढमगमए-कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीईए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं नवसु वि गमएसु उववाय, ठिई, कायसंवेहो उवउंजिऊण भाणियव्वं। सत्तम अट्ठम णवम गमए ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। नवमगमए-कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीईए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (१-९) -विया. स. २४, उ. १२, सु. २९-३० ३४. पुढविकाइए उववज्जतेसु सन्नि पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति-किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउय सण्णि पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति? ३३. पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव जो पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य है, तो भंते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव (असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक) एक समय ___ में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! द्वीन्द्रिय के नौ गमकों में जिस प्रकार कहा गया है उसी प्रकार यहाँ कहना चाहिए। विशेष-इनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है। पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष का है। भवादेश-सभी गम्मों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करते हैं। प्रथम गमक में कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अट्ठयासी हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। नौ ही गमकों में उपपात, स्थिति एवं कालादेश उपयोगपूर्वक कहना चाहिए। सातवें आठवें नौवें गम्मे में स्थिति और अनुबंध जघन्य पूर्वकोटि वर्ष तथा उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष जानना चाहिए। नौवें गमक में कालादेश से जघन्य बावीस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट अट्ठयासी हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है (१-९) ३४. पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले सभी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो, क्या वे संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंख्यातवर्ष की आयु वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउय सण्णि पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जति, णो असंखेज़्जवासाउय सण्णि पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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