SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गम्मा अध्ययन १६३९ प. जइ संखेज्जवासाउय सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं-जलचरेहिंतो उववज्जति? प्र. यदि पृथ्वीकायिक संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या जलचरों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. इत्यादि समग्र कथन पूर्वोक्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के समान उपपात पर्यन्त जानना चाहिए। शेष कथन रलप्रभा में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के समान यहाँ भी कहना चाहिए। उ. इच्चेव सव्वा वत्तव्वया जहा असण्णीणं जाव उववाओ भाणियव्यो। सेसं जहा रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स सण्णि पंचिंदिय तिरिक्खजोणियस्स वत्तव्वया भणिया तहेव इह वि भाणियव्या। णवरं-पढम गमए-कालादेसेणं-जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीईए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं काय संवेहो नवसु वि गमएस जहा असण्णीणं भणिओ तहेव निरवसेसो भाणियव्यो। मज्झिल्लएसु तिसु वि गमएसु इमाई नव नाणत्ताई, तं जहा१. ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। २. तिण्णि लेसाओ। ३. मिच्छादिट्ठी। ४. दो अण्णाणा। ५. काययोगी। ६. तिण्णि समुग्घाया। ७. ठिई-जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। विशेष-प्रथम गमक में कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अट्ठयासी हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि जितना काल व्यतीत करते हैं और इतने ही काल तक गमनागमन करते हैं। इसी प्रकार नौ ही गमकों में असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की तरह काय संवेध का समग्र कथन करना चाहिए। मध्य के तीन (४-५-६) गमकों में नौ बोलों में भिन्नताएँ हैं, यथा१. शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट भी अंगुल का असंख्यातवां भाग है। २. लेश्याएँ (आदि की) तीन होती हैं। ३. मिथ्यादृष्टि होते हैं। ४. दो अज्ञान होते हैं। ५. काययोगी होते हैं। ६. आदि के तीन समुद्घात होते हैं। ७. स्थिति-जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त होती है। ८. अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं। ९. अनुबंध भी स्थिति के अनुसार होता है। अन्तिम तीन (७-८-९) गमकों में स्थिति और अनुबंध जघन्य पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष का होता है। शेष उपपात और संवेध उपयोग पूर्वक जानना चाहिए।(१-९) ३५. पनुष्यों की अपेक्षा पृथ्वीकायिकों के उपपातादि का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर भी उत्पन्न होते हैं और असंज्ञी मनुष्यों से आकर भी उत्पन्न होते हैं। ८. अज्झवसाणा अप्पसत्था । ९. अणुबंधो जहा ठिई। पच्छिल्लएसु तिसु वि गमएसु-ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। सेसं उववाय संवेहो य उवउंजिऊण भाणियव्यो।(१-९) " -विया. स. २४, उ. १२, सु.३१-३३ ३५. मणुस्से पडुच्च पुढविकाइय उववाय परूवणंप. भन्ते ! जइ मणस्सेहिंतो उववज्जति-किं सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहिंतो वि उववज्जति, असण्णिमणुस्सेहितो वि उववजंति। -विया. स. २४, उ. १२, सु.३४ ३६. पुढविकाइए उववज्जंतेसु असन्नि मणुस्साणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. असण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? ३६. पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्यों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! असंज्ञी मनुष्य जो पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy