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________________ १६२२ - द्रव्यानुयोग-(३)) तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, नो देवेहिंतो उववज्जति। देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। एवं जहेव नेरइयउद्देसए तहेव भाणियव्यो। जिस प्रकार नैरयिक उद्देशक में प्रश्नोत्तर कहे हैं उसी प्रकार पज्जत्तापज्जत्त पज्जवसाणो भाणियव्यो। यहाँ भी पर्याप्त अपर्याप्त पर्यंत प्रश्नोत्तर करने चाहिए। -विया.स.२४, उ.२,सु.२ १२. असुरकुमारोववज्जंतेसु पज्जत्त असन्नि पंचिंदियतिरिक्ख- १२. असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय जोणियस्स उववायाइ वीसं दारं पखवणं तिर्यञ्चयोनिक के उत्पातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप. पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे प्र. भंते ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव जो भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने काल केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेणं उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। प. तेणं भंते !जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! एयस्स चेव रयणप्पभापुढवी गमग सरिसा नव उ. गौतम ! इसके रत्नप्रभापृथ्वी में कहे गमकों के समान नौ ही विगमा भाणियव्या, गमक कहने चाहिए। णवरं-जाहे अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ भवइ, ताहे विशेष-जब वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो तो अज्झवसाणा पसत्था, नो अप्पसत्था तिसु वि गमएसु । तीनों गमकों में अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं (१-९ गम्मा) -विया.स. २४, उ. २, सु.३-४ होते। (१-९) १३. असुरकुमारोववज्जतेसु असंखज्जवासाउय सन्निपंचिंदिय- १३. असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी तिरिक्खजोणियस्स उववायाइ वीसं दारं परूवणं पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के उत्पातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप. भंते ! जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो प्र. भंते ! यदि असुरकुमार संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उववज्जति किं आकर उत्पन्न होते हैं तो क्यासंखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों उववज्जति? से आकर उत्पन्न होते हैं या असंखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों उववज्जति? से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- उ. गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियजोणिएहिंतो उववजंति, असंखेज्जवासाउय तिर्यञ्चयोनिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं और असंख्यात सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति। वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। प. असंखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं प्र. भंते ! असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियभंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! तिर्यञ्चयोनिक जीव जो असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य हो केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? तो भंते! वह कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेणं उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और तिपलिओवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। प. ते णं भंते !जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उ. गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति। उत्पन्न होते हैं। सेसंतं चेव पण्होत्तराई। शेष प्रश्नोत्तर पूर्ववत् है। णवरं-वइरोसभनारायसंघयणी। विशेष-वे वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले होते हैं। ओगाहणा-जहण्णेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणंछ गाउयाई। उनकी अवगाहना-जघन्य धनुषपृथक्त्व की और उत्कृष्ट छह गव्यूति (कोश) की होती है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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