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________________ १६०४ प. ७. ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी? .. उ. गोयमा! नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। प. ८.ते णं भंते!जीवा किं नाणी.अण्णाणी? उ. गोयमा! नो नाणी, अण्णाणी, नियमा दुअण्णाणी,तं जहा १. मइअण्णाणी य, २.सुयअण्णाणी य। प. ९. ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी, वइजोगी, काय जोगी? उ. गोयमा! नो मणजोगी, वइजोगी वि,कायजोगी वि। . प. १०. ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता? उ. गोयमा! सागारोवउत्ता वि,अणागारोवउत्ता वि। प. ११.तेसिणं भंते! जीवाणं कति सण्णाओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा!चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ,तं जहा १.आहारसण्णा जाव ४. परिग्गहसण्णा। प. १२.तेसिणं भंते! जीवाणं कति कसाया पण्णत्ता? उ. गोयमा! चत्तारि कसाया पण्णत्ता,तं जहा १.कोहकसाए जाव ४.लोभकसाए। प. १३.तेसिणं भंते! जीवाणं कइ इंदिया पण्णत्ता? उ. गोयमा! पंचेंदिया पण्णत्ता,तं जहा १.सोइंदिए जाव ५. फासिंदिए। प. १४.तेसिणं भंते! जीवाणं कइ समुग्घाया पण्णता? उ. गोयमा! तओ समुग्घाया पण्णत्ता,तं जहा १.वेयणासमुग्घाए, २. कसायसमुग्घाए, ३. मारणंतियसमुग्धाए। प. १५. ते णं भंते! जीवा किं सायावेयगा, असायावेयगा? उ. गोयमा! सायावेयगा वि,असायावेयगा वि।। प. १६. ते णं भंते! जीवा किं इत्थीवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा? उ. गोयमा! नो इत्थीवेदगा, नो परिसवेदगा, नपुंसगवेदगा। द्रव्यानुयोग-(३) प्र. ७. भंते! वे जीव क्या सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं ? उ. गौतम! वे सम्यग्दृष्टि नहीं होते, मिथ्यादृष्टि होते हैं किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं। प्र. ८. भंते! वे जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उ. गौतम! वे ज्ञानी नहीं होते, अज्ञानी होते हैं, उनके नियमतः दो अज्ञान होते हैं, यथा १. मतिअज्ञान २. श्रुतअज्ञान। प्र. ९.भंते! वे जीव क्या मनोयोगी होते हैं, वचनयोगी होते हैं या काययोगी होते हैं? उ. गौतम! वे मनोयोगी नहीं होते हैं (किन्तु) वचनयोगी और काययोगी होते हैं। प्र. १0. भंते! वे जीव क्या साकारोपयोग-युक्त हैं या __ अनाकारोपयोग-युक्त हैं ? उ. गौतम! वे साकारोपयोग-युक्त भी हैं और अनाकारोपयोग युक्त भी हैं। प्र. ११. भंते! उन जीवों के कितनी संज्ञाएं कही गई हैं ? उ. गौतम! उनके चार संज्ञाएं कही गई हैं, यथा १. आहारसंज्ञा यावत् ४. परिग्रहसंज्ञा। प्र. १२. भंते! उन जीवों के कितने कषाय कहे गए हैं ? उ. गौतम! उनके चार कषाय कहे गए हैं, यथा १. क्रोधकषाय यावत् ४. लोभकषाय। प्र. १३. भंते! उन जीवों के कितनी इन्द्रियां कही गई हैं ? उ. गौतम! उनके पांच इन्द्रियां कही गई हैं, यथा १. श्रोत्रेन्द्रिय यावत् ५. स्पर्शेन्द्रिय। प्र. १४. भंते! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे गए हैं ? उ. गौतम! उनके तीन समुद्घात कहे गए हैं, यथा १. वेदनासमुद्घात, २. कषायसमुद्घात, - ३. मारणान्तिकसमुद्घात। प्र. १५. भंते! वे जीव क्या सातावेदक हैं या असातावेदक हैं ? उ. गौतम! वे सातावेदक भी हैं और असातावेदक भी हैं। प्र. १६. भंते! वे जीव क्या स्त्रीवेदक हैं, पुरुषवेदक हैं या नपुंसकवेदक हैं ? उ. गौतम! वे स्त्रीवेदक नहीं हैं, पुरुषवेदक नहीं हैं किन्तु नपुंसकवेदक हैं। प्र. १७. भंते! उन जीवों के कितने काल की स्थिति कही गई है ? . उ. गौतम! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की कही गई है। प्र. १८. भंते! उन जीवों के अध्यवसाय स्थान कितने कहे गए हैं ? प. १७.तेसिणं भंते! जीवाणं केवइयं कति ठिई पण्णत्ता? . उ. गोयमा!जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। प. १८. तेसि णं भंते! जीवाणं केवइया अज्झवसाणा पण्णता? उ. गोयमा! असंखेज्जा अज्झवसाणा पण्णत्ता। प. ते णं भंते! किं पसत्था, अप्पसत्था? उ. गोयमा! पसत्था वि, अपसत्था वि। उ. गौतम! उनके अध्यवसाय-स्थान असंख्यात कहे गए हैं। प्र. भंते! उनके वे अध्यवसाय-स्थान प्रशस्त हैं या अप्रशस्त हैं? उ. गौतम! वे प्रशस्त भी हैं और अप्रशस्त भी हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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