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________________ १५९२ ठिई एवं चेव। णवर-अंतोमुहुत्तो नत्थि,जहन्नगं तहेव, द्रव्यानुयोग-(३) स्थिति भी इसी प्रकार है। विशेष-उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक नहीं कहना चाहिए। जघन्य उसी प्रकार कहना चाहिए। इनमें सर्वत्र सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होते, इनमें विरति, विरताविरति और अनुत्तरविमानों में उत्पत्ति नहीं होती। प्र. भंते ! सभी प्राण यावत् सर्वसत्व पूर्व में उत्पन्न हुए हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इस प्रकार ये सात अभवसिद्धिक महायुग्म शतक होते हैं। सव्वत्थ सम्मत्तं, नाणाणि नत्थि। विरई, विरयाविरई, अणुत्तरविमाणोववत्ती एयाणि नत्थि । प. भंते ! सव्वपाणा जाव सव्व सत्ता पुव्वोववन्ना? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे। एवं एयाणि सत्त अभवसिद्धीय-महाजुम्मसयाणि भवंति। -विया. स. ४०, १७-२१ स.पं., उ. १-११ एवं एयाणि एक्कवीसं सन्निमहाजम्मसयाणि। सव्वणि वि एक्कासीई महाजुम्मसयाणि। -विया. स. ४0, ३९. रासिजुम्मस्स भेया तेसिं लक्खणाणि य परूवणं.. प. कइणं भंते ! रासीजुम्मा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चत्तारि रासीजुम्मा पण्णत्ता,तं जहा १.कडजुम्मे जाव ४. कलिओए। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "चत्तारि रासीजुम्मा पण्णत्ता,तं जहा १.कडजुम्मे जाव ४. कलिओए?" उ. गोयमा ! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए, से तं रासीजुम्म कडजुम्मे, एवं जाव जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए, से तं रासीजुम्मकलिओए। इस प्रकार ये संज्ञीपंचेन्द्रियों के इक्कीस महायुग्म शतक हुए। सभी मिलाकर महायुग्म-सम्बन्धी ८१ शतक सम्पूर्ण हुए। ३९. राशियुग्म के भेद और उनके लक्षणों का प्ररूपण प्र. भंते ! राशियुग्म कितने कहे गए हैं ? उ. गौतम ! राशियुग्म चार कहे गए हैं, यथा १. कृतयुग्म यावत् ४. कल्योज। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि “राशियुग्म चार हैं, यथा १. कृतयुग्म यावत् ४. कल्योज।" उ. गौतम ! जिस राशि में से चार-चार अपहार करते हुए अन्त में चार शेष रहे, उस राशि युग्म को 'कृतयुग्म' कहते हैं। इसी प्रकार यावत् जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में एक शेष रहे, उस राशियुग्म को "कल्योज" कहते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"राशि युग्म चार हैं, यथा-१. कृतयुग्म यावत् ४. कल्योज।" से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"चत्तारि रासीजुम्मा पण्णत्ता,तं जहा- १. कडजुम्मे जाव ४. कलिओए।" -विया. स.४१, उ.१,सु. १ ४०. रासीजुम्म कडजुम्मेसुचउवीसदंडएसु उववायाइ परूवणं प. दं. १. रासीजुम्म-कडजुम्म नेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति? उ. गोयमा ! उववाओ जहा वक्तीए। प. तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति? उ. गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। प. ते णं भंते ! जीवा किं संतरं उववज्जति, निरंतर उववज्जति? उ. गोयमा ! संतरं पि उववजंति, निरंतर पि उववजंति। ४०. राशियुग्म कृतयुग्म वाले चौवीसदंडकों में उत्पातादि का प्ररूपणप्र. भंते ! राशियुग्म कृतयुग्म वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इनका उपपात व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार जानना चाहिए। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात . उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! वे जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। सान्तर उत्पन्न होने पर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय का अन्तर करके उत्पन्न होते हैं। संतरं उववज्जमाणा जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जे समये अंतरं कटु उववज्जति।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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