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________________ युग्म अध्ययन निरंतर उववज्जमाणा जहण्णेणं दो समया, उक्कोसेणं असंखेज्जा समया अणुसमयं अविरहियं निरंतरं उववज्जति। प. ते णं भंते !जीवा जं समयंकडजुम्मा तं समयं तेओया? जं समयं तेओया तं समयं कडजुम्मा? उ. गोयमा !णो इणठे समठे। प. जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा, जं समय दावरजुम्मा तं समयं कडजुम्मा? उ. गोयमा ! नो इणठे समझें। प. जं समयं कडजुम्मा तं समयं कलिओया, जं समयं कलिओया तं समयं कडजुम्मा? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे। प. ते णं भंते ! जीवा कहं उववज्जति? उ. गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाण निवत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहित्ता पुरिमठाणं उवसंपजित्ताणं विहरइ, एवामेव ते वि जीवा पवओविव पवमाणा अज्झवसाणं निव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपज्जित्ताणं विहरति जाव आयप्पयोगेणं उववज्जति, नो परप्पयोगेणं उववज्जंति। प. ते णं भंते ! जीवा किं आयजसेणं उववज्जति, आय अजसेणं उववज्जति? उ. गोयमा ! नो आयजसेणं उववज्जति, आयअजसेणं उववज्जंति। प. जइ आयअजसेणं उववज्जति किं आयजसं उवजीवंति, आयअजसं उवजीवंति? १५९३ निरन्तर उत्पन्न होने पर जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक निरन्तर प्रतिसमय अविरहितरूप से उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! वे जीव जिस समय कृतयुग्मराशि वाले होते हैं, क्या उसी समय त्र्योज राशि वाले होते हैं? जिस समय त्र्योज राशि वाले होते हैं, क्या उसी समय कृतयुग्मराशि वाले होते हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! वे जिस समय कृतयुग्म वाले होते हैं, क्या उसी समय द्वापरयुग्म वाले होते हैं, जिस समय वे द्वापरयुग्म वाले होते हैं, क्या उसी समय कृतयुग्म वाले होते हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! जिस समय वे कृतयुग्म वाले होते हैं, क्या उसी समय कल्योज होते हैं, जिस समय कल्योज वाले होते हैं, क्या उसी समय कृतयुग्मराशि वाले होते हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! वे जीव (नैरयिक) कैसे उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसाय निष्पन्न क्रिया साधन द्वारा अपने पूर्वस्थान को छोड़कर भविष्यकाल में आगे के स्थान को प्राप्त करता है, वैसे ही जीव भी कूदने वाले की तरह कूदते हुए अध्यवसाय निष्पन्न क्रिया साधन (कर्मों) द्वारा पूर्वभव को छोड़कर आगामी भव को प्राप्त कर उत्पन्न होते हैं यावत् वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं पर-प्रयोग से उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. भंते ! वे जीव आत्म-यश (आत्म-संयम) से उत्पन्न होते हैं या आत्मअयश (आत्म-असंयम) से उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु आत्म अयश से उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि वे जीव-आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्म-यश से जीवन निर्वाह करते हैं या आत्म-अयश से जीवननिर्वाह करते हैं? उ. गौतम ! वे आत्म-यश से जीवननिर्वाह नहीं करते, किन्तु आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं। प्र. यदि वे आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं, तो वे सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं? उ. गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं, अलेश्यी नहीं होते हैं। प्र. यदि वे सलेश्यी होते हैं तो क्रिया सहित होते हैं या क्रियारहित होते हैं? उ. गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं। प्र. यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. दं. २. भंते ! राशियुग्म-कृतयुग्मराशि वाले असुरकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कहा है उसी प्रकार यहां भी सम्पूर्ण कहना चाहिए। उ. गोयमा ! नो आयजसं उवजीवंति, आयअजसं उवजीवंति। प. जइ आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा, अलेस्सा? उ. गोयमा ! सलेस्सा, नो अलेस्सा। प. जइ सलेस्सा किं सकिरिया,अकिरिया? उ. गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया। प. जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे। प. दं. २. रासीजुम्म-कडजुम्म-असुरकुमारा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! जहेव नेरइया तहेव निरवसेसं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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