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________________ ( १५८० - १५८० द्रव्यानुयोग-(३) परिमाण-पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं। परिमाणं-पन्नरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। एवं एएसु सोलससु महाजुम्मेसु एक्को गमओ, . णवर-परिमाणे नाणत्तं७. तेओयदावरजुम्मेसु चोद्दस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा,अणंता वा उववज्जति। ८. तेओयकलिओएसु तेरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववति। ९. दावरजुम्मकडजुम्मेसु अट्ठ वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति। १०. दावरजुम्मतेओयेसु एक्कारस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जंति। ११. दावरजुम्मदावरजुम्मेसु दस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा,अणंता वा उववज्जति। १२. दावरजुम्मकलिओयेसु नव वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जावा,अणंता वा उववज्जति। १३. कलिओयकडजुम्मेसु चत्तारि वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति। १४. कलिओयतेयोएसु सत्तवा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा,अणंता वा उववज्जति। १५. कलिओयदावरजुम्मेसु छ वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति। प. १६. कलिओयकलिओयएगिंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओ तहेव! परिमाणं पंच वा,संखेज्जा वा,असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तोग __-विया. स. ३५, १/ए, उ.१, सु. २-२३ २३. पढमसमय सोलसमहाजुम्मएगिदिएसु उववायाइ बत्तीसदाराई परूवणंप. पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! तहेव। एवं जहेव पढमो उद्देसओ तहेव सोलसखुत्तो बिइयो वि भाणियव्यो तहेव सव्वं। शेष सब पूर्ववत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त कहना चाहिए। इस प्रकार इन सोलह महायुग्मों का एक ही आलापक (गमक) है। विशेष : इनके परिमाण में भिन्नता है, यथा७. त्र्योज द्वापरयुग्म में चौदह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। ८. त्र्योज कल्योज में तेरह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। ९. द्वापरयुग्म कृतयुग्म में आठ, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। १०. द्वापरयुग्मत्र्योज में ग्यारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। ११. द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म में दस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। १२. द्वापरयुग्मकल्योज में नौ, संख्यात. असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। १३. कल्योजकृतयुग्म में चार, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। १४. कल्योजत्र्योज में सात, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। १५.कल्योजद्वापरयुग्म में छह,संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। प्र. १६. भंते ! कल्योज-कल्योजराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इनका उपपात भी पूर्ववत् कहना चाहिए। इनका परिमाण-पांच, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। शेष सब पूर्ववत् अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं पर्यन्त कहना चाहिए। २३. प्रथम समयोत्पन्न सोलह महायुग्म वाले एकेन्द्रियों में उत्पातादि बत्तीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् कहना चाहिए। इसी प्रकार जैसे प्रथम उद्देशक में सोलह महायुग्मों में उत्पाद आदि कहे हैं वैसे ही द्वितीय उद्देशक में भी कहने चाहिए। अन्य सब कथन पूर्ववत् है। १. ग्यारह उद्देशक द्वार १. औधिक, ६. प्रथमप्रथमसमय, ११. चरिमअचरिमसमय। २. प्रथमसमय, ७. प्रथमअप्रथमसमय, ३. अप्रथमसमय, ८. प्रथमचरिमसमय, ४. चरिमसमय, ९. प्रथमअचरिमसमय, ५. अचरिमसमय, १०. चरिम-चरिमसमय, -व्या.श.३५
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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