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________________ युग्म अध्ययन (१५८१) णवरं-इमाणि दस नाणत्ताणि१. ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। २-३.आउयकम्मस्स नो बंधगा, अबंधगा। ४-५.आउयकम्मस्स नो उदीरगा,अणुदीरगा। ६-७-८. नो उस्सासगा, नो निस्सासगा, नो उस्सासनिस्सासगा। ९.१०. सत्तविहबंधगा, नो अट्ठविहबंधगा। प. ते णं भंते ! "पढमसमय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिदिय"त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! एक्कं समयं। एवं ठिई वि। समुग्घाया आइल्ला दोन्नि। समोहया न पुच्छिज्जति। उव्वट्टणा न पुच्छिज्जइ। सेसं तहेव सव्वं निरवसेसं सोलससु वि गमएसु जाव अणंतखुत्तो। -विया. स. ३५१/ए, उ. २, सु. १-४ २४. अपढमसमयाइ चरिमाचरिमसमय पज्जत्तं महाजुम्म- एगिदिएसु उववाइयाइ बत्तीसदाराणं परूवणंप. अपढमसमय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिंदिया णं भंते ! ___कओहिंतो उववजंति? उ. गोयमा ! एसो जहा पढमउद्देसओ सोलसहिं वि जुम्मेहिं तहेव नेयव्यो जाव कलियोगकलियोगत्ताए जाव अणंतखुत्तो। -विया. स.३५१/ए, उ.३,सु.१ प. चरिमसमय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं जहेव पढमसमय उद्देसओ, विशेष-इन दस बातों में भिन्नता है, यथा१. अवगाहना-जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग है, उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है। २-३. आयु कर्म के बन्धक नहीं, अबन्धक है। ४-५. आयु कर्म के ये जीव उदीरक नहीं, अनुदीरक हैं। ६-७-८. ये उच्छ्वास, निःश्वास तथा उच्छ्वास-निःश्वास से युक्त नहीं हैं। ९-१०. ये सात प्रकार के कर्मों के बन्धक हैं, आठ कर्मों के बन्धक नहीं हैं। प्र. भंते ! वे प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्म राशि वाले एकेन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक रहते हैं ? उ. गौतम ! वे एक समय तक रहते हैं। उनकी स्थिति भी इसी प्रकार (एक समय की) है। उनमें आदि के दो समुद्घात होते हैं। वे समवहत नहीं होते हैं, उनमें उद्वर्तना का प्रश्न नहीं करना चाहिए। शेष सब कथन सोलह ही महायुग्मों में अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त प्रथम उद्देशक के अनुसार कहना चाहिए। २४. अप्रथमसमय से चरमाचरम पर्यन्त महायुग्म वाले एकेन्द्रियों में उत्पातादि बत्तीसद्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! अप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्म राशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार प्रथम उद्देशक में कल्योज-कल्योज पर्यन्त सोलह महायुग्मों का कथन किया है उसी प्रकार यहां भी अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त कहना चाहिए। णवरं-देवा न उववज्जति,तेउलेस्सा न पुच्छिज्जंति, सेसं तहेव। -विया. स.३५१/ए, उ.४,सु.१ प. अचरिमसमय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! जहा अपढमसमयउदेसओ तहेव भाणियव्यो निरवसेसं। -विया. स.३५१/ए, उ.५, सु.१ प. पढमपढमसमय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं। -विया. स. ३५१/ए, उ. ६, सु.१ प. पढमअपढमसमय-कडजुम्मकडजुम्म-एगिदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? - उ. गोयमा !जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव भाणियव्वो। -विया. स.३५/१/ए, उ.७,सु.१ प्र. भंते ! चरमसमयों के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार प्रथमसमय उद्देशक कहा है (उसी प्रकार यह उद्देशक भी कहना चाहिए।) विशेष-इनमें देव उत्पन्न नहीं होते तथा तेजोलेश्या के लिए प्रश्न नहीं करना चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् है। प्र. भंते ! अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इस उद्देशक का समग्र कथन अप्रथमसमय उद्देशक (तीन) के अनुसार कहना चाहिए। प्र. भंते ! प्रथमप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! प्रथमसमय के उद्देशक के अनुसार समग्र कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! प्रथम-अप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इसका समग्र कथन प्रथमसमय के उद्देशकानुसार कहना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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